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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९१ बुद्धिसागर आत्म शक्तिज जाणीए दील धैर्यता ॥ ३७ ॥ क्षयोपशमनी शक्ति पामी मोह हठावे, क्षयोपशमनी शक्तिथी जगमां पूजावे; चारकर्मना क्षयोपशमथी शक्ति न्यारी, शक्तितणो भंडार आत्मनी छे बलिहारी. आश्चर्य जगमां मानतुं शुं आत्मशक्ति आगले, बुद्धिसागर आत्म शक्तिज पामतां सर्वे मले. परस्वभावे आत्म शक्तिने जे वापरता, भ्रांतिथी भूलेला जीवो ते नहि तरता; आत्मस्वभावे आत्मशक्तिनी थाती वृद्धि, क्षायिकभावे आत्मशक्तिथी घटमां सिद्धि. क्षायिकभावे आत्म शक्तिज शुद्ध निर्मल दीपती, बुद्धिसागर शिव सनातन सर्व शत्रु जीपती. आत्मशक्तिनी श्रद्धाथी ध्याता सुखपावे, आत्मशक्तिनी श्रद्धाथी मोहादिक जावे; आत्मशक्तिनी श्रद्धाथी हिंमत बहु आवे, आत्मशक्तिनी श्रद्धाथी देवो वश थावे. आत्मनासामर्थ्य थी तो शरीर आखं हालतं; आत्मनासामर्थ्यथी तो शरीर आखं चालतं. आत्मतणी शक्तिथी जगमां सर्व बनेछे, चेतननी शक्ति तो समजो आत्म कनेछे; आत्म शक्तिथी वीरजिने तो मेरु हलाव्यो, आत्म शक्तियी बाहुबली जगमां जयपायो. आत्मना सामर्थ्यथी तो भरत केवल पामीया; महामुनि अति मुक्तिजीए कर्म दोषो वामीया. For Private And Personal Use Only ॥ ३८ ॥ ॥ ३९ ॥ ॥ ४० ॥ ॥ ४१ ॥
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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