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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ आत्मज्ञान महत्ता. आत्माऽसंख्य प्रदेशी शाश्वत, अनन्तगुण पर्यायाधार; अनंतज्ञानने अनंत दर्शन, अनन्त चारित्र धरनार. ॥१॥ सहभाविते गुण- लक्षण, लक्षण क्रमभावि पर्याय; द्रव्यार्थिक नयथी छे ध्रुवता,पर्यायार्थिक अनित्यसार. ॥ २॥ षड् गुणहानि वृद्धि थाती, प्रति प्रदेशे समये सार; अगुरुलघु पर्याये प्रगटे, अनुभवथी समजो निर्धार. |॥ ३ ॥ छती पर्याय तणी छे ध्रुवता, अनाद्यनंति स्थिति धार; सामर्थ्य पर्याय अनंता, उत्पत्तिव्यय समये सार. ॥४॥ छति पर्याय थकी पण जाणे, सामर्थ्य पर्याय अनंत समये समये अनंतगुणतुं, वर्तन ते पर्याय कहत. ॥५॥ उपशम क्षयोपशम साधनथी, क्षायिक साध्यपणुं वीय; सहज भाव ते क्षायिक जाणोक्षायिक शाश्वत सुख कथाय.॥६॥ सात नयोने अष्ट पक्षथी, चेतन समजे दुःखडां जाय; सहज रुप चेतननुं प्रगटे, उपदेशे छे श्री जिनराय. ॥७॥ सोऽहं सोऽहं तत्त्वमसि जीव, एक चित्तथी ध्यावो ध्येयः । ज्ञाता ज्ञेयने ज्ञानमयी तुं, शुद्ध बुद्धने उपादेय. ॥८॥ अज अक्षर अविनाशी निर्मल, परमब्रह्म परमेश्वर देव; बुद्धिसागर अनुभवामृत, चाख्यु निजगुण करतां सेव. ॥९॥ जगत्नी खटपट. दुनियानी खटपट सहु खोटी, शा माटे तेमां राचं, गाडी घोडाथी नहि शान्ति, वाडी, वर्तन काचं. ॥१॥ शा मादे विकथामां राचं, विकथामांहि सार नहीं; For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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