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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ " श्रद्धा त्यां परमेश्वर वसति, श्रद्धामां रहेशो राची. श्रद्धाथी जीवन छे साधुं तप जप संयम धर्म फळे, श्रद्धाथी प्रगटे छे समकित श्रद्धाथी इच्छे ते मळे. श्रद्धाथी देवोनी प्रीति, श्रद्धाथी नीति रीति, देवगुरुनी श्रद्धा धारे, तेने नहि जगमां भीति. श्रद्धाथी उत्साह वधे छे, श्रद्धाथी शाश्वत सिद्धि; बुद्धिसागर सद्गुरु श्रद्धा, प्रगटावे छे सहु ऋद्धि. For Private And Personal Use Only ॥ ६ ॥ || 19 11 ॥ ८ ॥ 119 11 दुःख समयमां धैर्य राख. ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ दुःख पडद्याथी तजो न समता, कर्या कर्मने भोगववां; उदये आवे जे जे कर्मों, समता भावे ते सहेवां. शीलवंती सीताने माथे, कलंक दुःखदायेि तो चढयुं, भोगवतां अंते ते छूट, जंगलमांहि रहेवं पडयुं. पूर्व कर्मी कलंक चढे पण, शा माटे मन दीलगीरी, आत्मघात पण कदी न करवो, सारी वेळा थाय फरी ॥३॥ राजा कर्मोदयी रंका, ब्रह्मचारी पण व्यभिचारी, शीलवंतीने लोको निंदे, कर्म तणी गत छे न्यारी ॥ ४ ॥ कर्मोदयधी जन भीखारी, फरी फरी भीक्षा मागे; कर्मोदयी राजा थावे, नरनारी पाये लागे. शुभ कर्मोदयथी छे सारु, अशुभथी जगमां दुःखी; सारा खोटा कर्म उदयने, समभावे वेदे सुखी. ॥ ५॥ कोइक वेळा कीर्ति गाजे, मान घणुं जगमां छाजे, अपकीर्ति तेनी कोइ वेळा, मान भंगधी ते लाजे. कर्या कर्म भोगवां सहुने, कर्माधीन सहु संसारी, ॥ ६ ॥ 116 11
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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