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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩ यथामवृत्ति करणमां, बीत्यो काळ अनादि; तोपण पार न आवीयो, टळी आधि ने व्याधि. म० ।। २ ।। अपूर्वकरणमा आवीने, अनिवृत्ति ग्रहायुं; सम्यक् प्रभु गुण दर्शने, शुद्धरूप जणायुं. दर्शन चारित्रमोहनो, नाश थातां प्रभुता; केवलज्ञाने ज्ञेयनी, भासनमां विभुता. क्षायिक नव लब्धि जगे, पूर्णानन्द विकासे, सिद्ध बुद्ध परमातमा, ज्योति परम प्रकाशे. निज दृष्टि निज देखतां मल्लि जिनवर मळीया; बुद्धिसागर भक्तिथी, म्हारा मनोरथ फळीया. म० ॥ ६ ॥ , For Private And Personal Use Only म० ॥ ३ ॥ म० ॥ ४ ॥ म० ॥ ५ ॥ गुरुभक्ति. सद्गुरु मुनिनी भक्ति करतां, लक्ष्मी लीला प्रगट थशे; जे जोइए ते आवी मळे सहु, आधि उपाधि दूर जशे ॥ १ ॥ आहार पाणीथी मुनिवर भक्ति करतां कर्म कलंक टळे; नरगति सुरगति शिवगति सुखड, जे इच्छे ते सर्व मळे. ॥ २ ॥ वैयावृत्य करतां मुनिनुं, बोधिबीजनी छे प्राप्ति; वैयावृत्य गुण अप्रतिपाती, गुरुधी मुक्ति छे व्याप्ति. वैयावृत्ये केवल प्रगटे, वैयावृत्ये छे मुक्ति; वैयावृत्य मुनिनुं करतां, तीर्थकर पदवी उक्ति. मुनि समुं नहि पात्र जगत्मां, मुनि तीर्थ जगमां भारी; मुनि भक्तिथी मुक्ति पासे, समजो जगमां नरनारी. मुनिनी सेवा अमृत मेवा, मुनि सेवामां छे ऋद्धि; मंगल माला सुखना दहाडा, प्रगटे छे शाश्वत सिद्धि. ३ ॥ ॥ ४ ॥ ॥ ५ ॥ ॥ ६ ॥
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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