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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय विकारो सर्वे टळे, तात्त्विकमुख चेतननु मळे, मुमतिपति आतम छे कंथ,चाल चाल चेतन शिवपन्थ. ॥७॥ अनित्यपर्यायार्थिक सार, द्रव्यार्थिकथी नित्याधार; शुभाशुभ पुद्गलथी भिन्न, वर्ते दीन सत्ताथी जिन, मळियु टाणुं हवे न हार, अनित्य पर्यायार्थिक सार. ॥ ७१ ।। पुनः पुनः मनमन्दिर ध्याउ, आतमध्याने शिवपुर पाउ; ध्याने सिद्धया सघळा जीव, पाम्या सिद्ध सनातन शिव, हरतां फरतां तवगुण गाउ,पुनः पुनः मनमन्दिर ध्याउ.॥७२।। हुं तुंनो सहु नासे भेद, परस्वभावि नासे खेद; शाश्वत सिद्धि ध्याने धरे, जय जय मङ्गलमाला वरे, कर्माष्टकनो होवे छेद, हुं तुंनो सहु नासे भेद. ॥७३ ॥ द्वासप्तति एम प्रेमे गाइ, साबरमतीना कांठे आइः प्रेमाभाइ हेमाभाइ वास, बेश बंगलो शोभे खास, दिन एक ध्याने चेतन ध्याइ, द्वासप्तति एम प्रेम गाइ. ॥७४|| चित्तनी स्थिरता मुखने हेत, अनुभव बहोतेरी संकेत; संवत ओगणिस चोसठ साल, कार्तिक वदी सातम सुविशाल; देह बंगलो चेतन चेत, चितनी स्थिरता सुखनो हेत. ।। ७५ ॥ चेतन, साचुं छे ज्ञान, मान मान शिक्षा दील मान; अनुभव मङ्गलवाजे तूर, शाश्वत लक्ष्मी पामे शूर, बुद्धिसागर सिद्धि स्थान, चेतननुं साचं छे ज्ञान. ॥ ७ ॥ ब्रह्मचर्यमहिमा. मनहरछन्द. शीयलथी सुख थाय शीयलथी दुःख जाय, शीयलथी देह दृढ, सुमन मुहाय छे; For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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