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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૮ संकटनी शाळामां भणतां, थावे प्राणी वीर; श्रद्धानी कसोटीरे, संकट पडे वीरे वरी. संकट. ॥ २॥ संकट वेळा उत्सव सरखी, गणता उत्तम जन; मेरु डगे पण दील डगे नही, श्रद्धा राखे मन, सुख दुःख वेळारे क्षणे क्षणे आवे फरी. संकट. ॥ ३ ॥ प्राण पडे पण तजो न समता, अंते भएं थनार, उच्चाशयथी उच्च थशो सहु, समजो नर ने नार; बुद्धिसागर समतारे, जग जय विजय करी. संकट. ॥ ४ ॥ देहमां दीवो. ॐ नमः राग धीरानापदनो. देहमा छे दीवारे, झळहळ ज्योत करनारो, अनादि प्रकाशीरे, अज्ञान तम हरनारो. टेक. असंख्यप्रदेशी नित्य स्वरुपी, अनंत गुण आधार, सहजानंदी शत्रुजय छे, देह पिंड करनार; जोगीनो पण ते जोगीरे, तारे ने पोते तरनारो. देह. ॥ १ ॥ अनंत नाम धरीने ध्यावे, दुनियां जेने खास; सर्वविष ने सहुथी अळगो, लोकालोक प्रकाश, एवो इश पोतेरे क्षायिकभाव वरनारो. देहमां. ॥ २ ॥ पिंडमां पिंडमां अनंत व्यक्ति, चिद्घन चेतन राय; क्षीर नीरनी पेठे व्याप्यो, योगीश्वर दिल ध्याय, प्रेमीनो पण ते प्रेमीरे, अनेक दुःख हरनारो. देहमां. ॥ ३ ॥ दिलमां ध्यावो देहे वसीयो, ज्ञाता ज्ञेयस्वरुप; बुद्धिसागर चिद्घन चेतन, वर्ते रुपारुप, अनादिनो योगीरे, प्रगटपणे योगी खरो. देहमां. ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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