SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ योग्यजनोनुं मान करे छे सद्गुण धरवा; रैयतनी आंतरडी दुःखवे थाय न सुखी, सन्तजनोनी हाय मळ्याथी नृपति दुःखी; धननो लोभ धरे नहि दिल करो नवा न वधारतो, व्यापार हुन्नर स्हाय आपी रैयतने उद्धारतो. ॥३॥ दगा प्रपंची अन्यायी नृपति छे खोटा, लोभे रैयत पीडे तेना नहि छे तोटा मगरुरीमां म्हाले केइक मदिरा पानी, अक्कलना नादान दीलमां जे अभिमानी; बायला बकवादिया केइ नृपतियो नजरे पडे, प्रजाजनने पीडवाने सहजमां शूरे चडे. रैयतने पीडयाथी निर्वशी केइ मरिया, रैयतने पीडयाथी नृपति ठाम न ठरिया; रैयतने पीडयाथी नर्के राजा जाशे, रैयतने पीडयाथी रौरव दुःखडा पाशे; जूलम करीने चालिया केइ बादशाहने राजवी, राज्य साथे लइ गया नहीं समज सदा नृपति भवी. ॥५॥ भेद भाव पुत्रोमा राखे ते नहि माता, रैयतने चुसे ते नृपति नरके जाता; कलिकालमां पापी नृपति थाशे लाखो, रावण जेवा नृपतिनी पण औ राखो; कर वधारी कारमा बहु रेयतने कनडे सदा, दैत्य जेवा नृपतियोधी शुभ थाशे नहि कदा. ॥६॥ पश्चिमवतनी संगे नृपति कोइक सारा, तज्यां धर्मनां कृत्य कन्या कुसंग नठारा; For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy