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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५६ गप्पां मारे ज्ञान न मळशे, उमर एले जाशे रे. गप्पां. ॥१॥ गप्पां मारे आळस प्रगटे, थाय न पर उपकारी रे; अंतर्धननो नाशज नक्की, उमर जाशे हारी रे. गप्पां. ॥२॥ नवरो बेठो खोद काढे, समजो नरने नारी रे; अदीजननां लक्षण एवां, मारे पेट कटारी रे. प्रभु भजनमा कायर कंपे, गप्पां मारे हरखे रे; हिताहित शुंकर मारे, मूरख ते नहि परखे रे. गप्पां ॥४॥ परनी पंचातो करवाथी, धर्मे कदी न बुझे रे; बुद्धिसागर समज समजे, सारो रस्ते मुझे रे. गप्पां ॥२॥ गप्पां ॥५॥ चिदानंद. परमप्रभु सबजन शब्दे ध्यावे - पराग. चिदानंद शुद्ध बुद्ध अविकारी, परममभु जयकारी. क्षायिक नव लब्धिनो भोगी, क्षायिक गुण गण योगी; नित्या नित्या स्वरुप विलासी, जड पुद्गलथी अयोगी. असंख्य प्रदेशी चिधन व्यक्ति, शाक्त अनंतनो स्वामी; ज्ञाता ज्ञेय अनंतनो समय, निर्वेदी निष्कामी. सदसत् एकानेक स्वरुपी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाश्वत सुख विलासी; निश्चय निज गुण ध्यान कर्याथी, चिदानंद ॥ १ ॥ • For Private And Personal Use Only चिदानंद. चिदानंद || २ ||
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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