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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३१ देह सृष्टि वर्तमाननी रे, कर्ता तेनो पिछान रे. जीव० ॥ ९ ॥ देह सृष्टि रचना करे रे, राग द्वेषना योग; राग द्वेषना नाशथी रे, सृष्टि देह वियोग रे. जीव० ॥ १० ॥ सृष्टिकर्ता नहि हुवे रे, निर्मळ इश्वर देव; राग द्वेषाभावी रे, बने न एवी देवरे. राग द्वेष सदभावधी रे, इश्वर नहि कहेवायः जीव० ।। ११ ।। शुद्ध इश्वर निर्मला रे, सृष्टिना कर्ता न थाय रे. जीव० ।। १२ ।। सहु जीवो परमातमा रे, सत्ताथी कहेवायः ध्याने कर्म विनाशथी रे, सिद्ध सदा परखाय रे. जीव० ||१३|| fisस्थादिक ध्यानथी रे, ध्यावो आतम राय; बुद्धिसागर गुरु लही रे, केवल कमला पाय रे. जीव० ॥ १४ ॥ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्माध्येय. माढ राग. प्रगटे आतम भान रे, दील प्रगटे छे भगवान, होवे जब एक तान रे, दील प्रगटे छे भगवान्. आत्म प्रदेशो ध्यावतां रे, शक्ति प्रगटे सर्व; ध्यान क्रिया अभ्यासथी रे, नासे मिथ्या गर्व रे. दि० ॥ १ ॥ " अगम अगोचर वस्तुनो रे, वीरला पामे पन्थ; दि० ||३|| गुरुगम वण के प्राणिया रे, थाक्या भणीने ग्रन्थ रे. दि० ॥२॥ ज्ञानविना श्रद्धा नहीं रे, श्रद्धा वण शी सेव; अनेकान्त नय योगथी रे, सेवो आतम देवरे. उपयोगे आतम भजो रे, असंख्य प्रदेशी रायः सहज समाधि संपजे रे, अंतर सुख परखाय रे. दिल. ॥४॥ शक्ति अनंति शाश्वती रे, प्रगटे नासे रोग; For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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