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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९९ परम स्वरुप राचता ने चित्र दोपा परिहरे, कपटी जे दूर रहे सत्य शांति तं वरं वैरागी गंभीर वढे जे निर्मळ वाणी, अंतरम उपयोग अहो जे सह गुणखाणी; आतमज्ञान विना नहि जगमां साचा साधु, कपटीओए जगवंदने फोली खार्थः मन वशमा राखे सदा ने कनक कान्ता परिहरे, बाह्य किरिया राचता नहि साधु तेवा सुख वरे ॥ २ ॥ देश धरीने क्लेश न करता समता दरीया, ज्ञान ध्यानमां निवळ चेतन चित्सुख वरिया; वेष अने आचार ज्ञानथी साधु परखो, करो ज्ञानिनुं मान सदा मनमांहि हरखो; साधु सद्गुरू चरणकमळे, दास जनतो भृंग छे; धन्य धन्य ते मुनिवरा जग, ध्यानमां जस रंग छे. ॥३ ॥ समजे नहि निज तत्त्व साधु शुं आतम साधे, समजे नहि निज तत्व अहो ते धर्म विराधेः ज्ञान विना किरिया पाखंडे जे जन वळग्या, तवा साधु मुक्ति थी वहु छे अलगा; सदुपदेशे सत्यने जे समजावे मेमे करी, बुद्धिसागर सत्य साबु मानवा उलट धरी. शुद्धस्वरूपप्रेममां सर्वनी ऐक्यता - शुं भक्तिनां भाइ नाणां, ए राग. मधी लागे जगत सह प्यारी, मुज आतम सम जीव धारु रे; प्रेमथी. For Private And Personal Use Only ॥ १ ॥ ॥ ४ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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