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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०९ चोरी जारी चुगली दोषो मोह करावे, मोहे जगमां दास छे सहु मोह महा जगपाश छे; मोहपुत्री दुःखदायी जगत्मांहि आश छे. ॥२॥ जगजन मनमां मोह विराजे गडगडगाजे, मोहे जगजन चाले बोले स्वारथ काजे; मोहे दृरे धर्म मोहथी दुनिया चाले, पशु पक्षियो प्रेमधरी बचाने पाळे; माह शत्रु वळवान छे जग मोहे नाटकतान छे, मोहनृपति गज्य भारे जगतनो मुलतान छे. ॥ ३ ॥ मोहे मूके लाज मोहथी अकल बूरी, माहे लूटे चोर मोहथी मारे री; मोहे भासे जूट मोहथी ठरी न बेस, मोहे वधतो लोभ मोहथी जीवन क्लेशे; चोल मजीठना रंग सम, मन मोहे निशदिन व्यापियुं, मोहन तो जोर भारे मलीन मनटुं पामीयु. ॥४॥ मोह महा छे काळ जाळमां सहु जकडाया, अंतर बाहिर दुःख मोहथी कोइ न डाद्या; कोलेराने प्लेग थकी पण मोहन खोटो, मोहे वाळ्यो दाट मोहथी ज्यां त्यां गोटो; मोहभूतना दास जे जन चतुर्गतिमा अडवडे, मोहनी जंझाळमांहि कुदीने प्राणी पडे. ॥५॥ मोहे ज्ञान न थाय मोहथी सान न शांति, मोटो छे चंडाळ मोहथी कबु न शान्ति; मोहे वाधे दुःख मोहथी विष न मोटं; मोहे मोटां पाप मोहथी मनई ग्वोद, For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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