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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोरी दुःखनी खाण भाग्यने उधुं वाळे, चोरी करतां घातक जूठा बोलो थावे, चोरीनो करनार पलकमां शीश कटावे; धणी नही को चोरनो ने चोरीथी मन धूजतुं, दुर्मतिथी धर्मकरणी सत्य तत्त्व न सूजतुं. ॥ २ ॥ चोरीनो करनार नरकमां व्हेलो जावे, चोरीनो करनार कदी नहि निर्भय थावे; चोरी करतां कूळ कलंकी कीर्ति नाशे, मळे न साची टेक सुजन नहि बेसे पासे; अढार वांकां ऊंटनां छे चोरनां तो लाख छे; लाख, पण वित्त अन्ते चोरीथी तो राख छे. ॥३॥ जेवू सरिता पूर चोरनी लक्ष्मी तेवी, जेवो जल बुबुद् गगनमा विद्युत् जेवी; परनी लक्ष्मी लेतां परना प्राण हणे छे, परनी लक्ष्मी लोभे दुःखनी खाण खणे छे. परलक्ष्मी पथ्थर समी गणी चोरी व्यसन निवारीए, समजीने अहो भव्य लोको चेतनने झट तारीए. ॥ ४॥ कृडे तोले असत्य मापे चोर कहावे, चोरीनो करनार दया शुं ? दिलमां लावे; चोरीनो करनार जगतमां समजो नागो, चोरीनो करनार तेहथी धर्म ज आघो. दिवस चोरो छे घणाने रात्री चोरो घोर छे, चौरवृत्ति चतुर लोको चोरना पण चोर छे. ॥५॥ मन वच काया थकी चोरीनो त्याग करे जे, भव पाथोधि दुःखदायिने स्हेज तरे जे; For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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