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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 66 १९५ सद्गुरुना सेवकोए सत्य मारग अनुसयों. विनयवंत ने धीर वीर भक्तिमां शूरा, गुरुमांसाचो प्रेम सदा छे धर्मे पूरा; गुरुवचने नहि शंक विवेके साधुं परखे, गुरु आवे के ऊभा थइने मनमा हरखे; हस्त जोडी प्रेमथी अहो वन्दन करता ते मुदा; बुद्धिसागर गुरुविनयथी शिष्य ले सुख संपदा. 'दारु विषे " छप्पय छंद. दारु छे दुःखकार दारूप दाटज वाळ्यो, दारु दीनतामूळ दारुथी देशज हार्यो : दारु दुर्मति मूळ दारुथी जीवनी हानी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only 11 8 11 दारु छे महा झेर दारुथी बने तोफानी; तन धन लक्ष्मी नाशनुं अरे कारण दारु जाणजो; भूतनो पण भूत दारुज समजु जन पीछानजो ॥ १ ॥ दारुपानी पाप करे छे जगमां भारे, दारुपानी वेश्या संगे जीवन हारे; दारुपाने सघळा दोषो स्टेजे आवे, प्रगटयो पण जे लेश गुण ते क्षणमां जावे; दारुमां कंकास छे अहो दुर्मति झट उकले, दारुथी तो देखी लेशो भाग्य वेळा नहि वळे. ॥ २ ॥ दारुनो पीनार कदी नहि ठामे ठरशे, भुली आतमभान पापनां कामो करशे; वहुने मात कहे छे जननीने वहु कहेवे,
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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