SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निन्दकनी छे दृष्टि अवळी सत्य तेने शुं जडे. निन्दानां बहु पाप सूत्रमा जोजो भाख्यां, नाम देइने निन्दक लोके दुःखो चाख्यां; यात सतीनी जे जन खाते निन्दा करता, कर्म ग्रहीने चतुर्गतिमां पामर फरता; तप जप संयम साधनारूप धर्मकरणी सहेल छ, दोष निन्दा त्यागवी अरे सर्वने मुश्केल छे. निन्दाथी नर नार जगत्मां सुख ना पामे, निन्दाथी नर नार जगत्मां ठरे न ठामे; निन्दा दोषे जगत्जीव तो सर्वे भूल्या, डहापणना पण दरिया निन्दक केइक ल्या; निन्दा तजतां सहु तज्यु अहो सज्जन मनमा धारजो, बुद्धिसागर दृष्टि गुणनी धारी आतम तारजो. ॥६॥ ज्ञानमहिमा. छप्पयछंद. करो ज्ञानिनुं मान ज्ञानिनी पासे किरिया, ज्ञानविना नहि भान ज्ञानवण कोय न तरिया; ज्ञानविना तो दुःख ज्ञानवण अंधाधुंधी, ज्ञाने कर्मविनाश ज्ञानथी प्रगटे शुद्धि ज्ञानी जगचिंतामणि अहो ज्ञानी जगमां दिनमणि, ज्ञानिनुं बहु मान करतां मुक्ति छ सोहामणी. ज्ञानविना शो धर्म ज्ञानवण भूल न भागे, ज्ञानविना शुं तत्त्व ज्ञानथी चेतन जागे; शाने शाश्वत शर्म ज्ञानथी प्रगटे युक्ति, ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy