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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८५ संतोषे सहु सुख, लोभना त्यागे धारीलोभ त्यज्याथी मानवी, मंगळमाळा पाय छे, बुद्धिसागर ज्ञानयोगे, समतानंद सुहाय छे. 66 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 23 गुरुभक्तिमहिमा छप्पय छंद चाल. गुरुभक्ति वण जीव तत्त्वने क्यांथी पामे, गुरुभक्ति वण जीव ठरे नहि निश्चळ ठामे; गुरुभक्ति वण तत्त्वज्ञाननी बात न जाणे, गुरुभक्ति वण प्रेमभावने क्यांथी आणे. गुरुविना नहि धर्म छे ने गुरु विना नहि शर्म छे; गुरु विना नहि ज्ञान मुक्ति गुरु विना तो भर्म छे. ॥ १ ॥ गुरुगम विण नहि ज्ञान सान तो क्यांथी आवे, गुरु विना नहि शास्वत सुखड पाणी पावे; गुरु विना नहि तप जप संजम किरिया साची, भव्यो गुरुनुं शरण करीने रहेजो राची; गुरुनी भक्ति साचवीने तप जप संयम सहु करो, गुरुभक्ति की भव्य जीवो भवसागरने झट तरो. ॥२॥ गुरु विना तो भवसागरमा भटके प्राणी, समजे नहि ते पामरप्राणी जिनवर वाणी; आपमतिथी अवळा चाले नगुरा प्राणी, नगुरा जीवो की न होवे सम्यग् नाणी; गुरु विना नहि सन्मति अहो मगटे छे उलटी मति; मायामां मस्तान थइ अरे पामे शुं ते सद्गति ? ।। ३ ।। For Private And Personal Use Only ॥ ७ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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