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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ जगत्मां कीर्ति छे धर्मे, पडे छे दुःख तो करें; जगत्मां धर्म दुःख टाळे, जगत्मां पाप दुःख आले. ॥५॥ जगत्मां धर्मना डंका, जगत्मां पापथी रंका; जगत्म धर्म बलिहारी, जगत्मां पाप भयकारी. ॥६॥ जगत्मां धर्म जयकारी, समजजो भव्य नरनारी; बुद्धयब्धि धर्मने धारो, विचारी पापने वारो. ॥७॥ जीवोपदेश. गझल. जीवलडा चीत्त जागीले, हृदयथी सत्य मागीले; जीवलडा सत्यमा रमजे, कदी नहि बाह्यमां रमजे. ॥१॥ जीवलडा सत्य छे त्हारु, विचारी ले हृदय प्यारु; जीवलडा सत्यमां सुखो, जीवलडा बाह्यमां दुःखो. ॥२॥ जीवलडा ध्यान कर रहारू, सदा जे शर्म करनारु; जीवलडा ध्यानमा रुडे, जीवलडा बाह्यमां कुटुं. ॥३॥ जीवलडा देहमा पोते, अवरमां शीदने गोते; जीवलडा ज्ञानथी शान्ति, जीवलडा बाह्यथी भ्रान्ति. ॥४॥ जीवलडा शीख मानीले, ह्रदयमां वात आणीले; जीवलडा चेतजे चित्त, धरीश नहि मोहने नित्य. ॥५॥ जीवलडा जागजे घटमां, धरीश ना चित्त घटपटमां; जीवलडा सत्य तु योगी, जीवलडा सत्य तु भोगी. ॥ ६ ॥ जीवलडा सत्यमां देवा, जीवलडा सत्यमां मेवा; जीवलडा सत्य तुं साचो, कदी नहि बाह्यमां राचो. ।।७।। जीवलडा सत्यनी कहेणी, जीवलडा सत्यनी रहेणी; बुद्धयब्धि ध्यानमा रहेजो, अखंडानंद झट लेजो. ॥८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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