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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नोटोमां रुपैया साचा, जोशो आ जगनो व्यवहार. जिनपडिमा पण तेवी रीते, जिन सरखी भावी मुखकार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, पाणी पामे भवनो पार. ॥३॥ समवसरणमां जिनवर बन्दे, फळ पामे जे पाणी सार; तेवू फळ पडिमा वन्दनथी, समजो मनमां नर ने नार. कलिकालमां जिन पडिमानो, साचो मोटो छे आधार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, प्राणी पामे भवनो पार. ॥४॥ सर्पबुद्धिथी दोरी हणतां, पंचेन्द्रिय हत्यानुं पाप; मन परिणामे फल ए जाणो, एवी जिन वचनोनी छाप. द्रौपतीए जिनपडिमा पूजी, धन्य धन्य श्रावक अवतार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, प्राणी पामे भवनो पार. ॥५॥ सूत्रोना अक्षर छे जेवा, तेवी मूर्ति छे निर्धार; अक्षर पडिमा वे छे सरखां, स्थापन निक्षेपो जयकार. अरिहन्तना नामे मुक्ति, स्थापनथी पण तेवी धार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, प्राणी पाम भवनो पार. ॥६॥ आगमने युक्तिथी साचो, जिनपडिमा वन्दन आचार; शाश्वत जिनपडिमाना पाठो, सूत्रोमां वर्ते हितकार. जिनपडिमानुं स्थापन करवू, उत्सव तेनो छे गुणकार; वन्दन पूजन भक्ति करता, प्राणी पामे भवनों पार. ॥७॥ जिनपडिमाथी जिननी यादी, जिननी यादी गुणर्नु मूळ; जिननी सेवा मीठा मेवा, भक्तिथी भागे छे भूल. बुद्धिसागर सापेक्षाथी समजी निश्चय ने व्यवहार; वन्दन पूजन भक्ति करतां, प्राणी पामे भवनो पार. ॥८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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