SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३६ गुरु भक्तिथी देव नासे नठारी; कहे धीनिधि सद्गुरु सुखकारी, करो सेवना प्रेमथी भव्य सारी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ॥ १० ॥ बालकोने हित शिक्षा. ॥ वचनामृत ॥ भुजंगी छन्द. पिता मातने बाळको पाय लागो, प्रभाते प्रतिदीन व्हेलाज जागो; भगोने गणो तत्व विद्या वधारो, कुठेवो पडे तेहने दूर वारो ॥१॥ अदेखाइथी क्लेश कूडो निवारो, रडेने रुवे पुत्र तेतो नठारोः कढ़ी गाळ बोलो नहीं रे नठारी, सदा वाक्यने बोलीए सुखकारी. २ की नासा तो क्रोध वारी, पिता मात शिक्षा थकी सुख भारी; सदा सत्य वाणी वदो धर्म धारी, बहु थाय छे चोरीथी तो वारी. ३ महा पाप चोरी करे तेह पावे, लहे बन्ध मृत्यु निगोदे सिधावे; करे चोरीनं काम तो नठारो, उरे ना कदा एक ठामे विचारो ४ दिले जाणजो चोरीनुं पाप मोडं, करे चोरी तेनुं थशे भाइ खोडं; भणो भावी शिक्षको पास विद्या, तजो ज्ञानथी जेह लागे अविद्या. ५ सदा साधु वंदी प्रेम लावी, गुरु सत्य देशे सुविद्यानी चावी; गुरुना का कार्य ने भव्य कीजे, भलामां सदा अन्यना चित्त दीजे. ६ गुरु ज्ञानथी मोह माया टळे छे, गुरु ज्ञानथी मुक्ति सहेजे मळे छे; गुरु ज्ञानथी गर्व नावेज पासे, गुरु ज्ञानथी सत्य ज्यां त्यां प्रकाशे. ७ सदा उन्नति धर्मथी तो थनारी, सदा धर्मथी दोष श्रेणी जनारी; दया धर्ममां बाळको चित्त राखो, दया धर्मधी मुक्तिनां सुख नाखो.८
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy