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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५ दीक्षा धारी मुनिवर गुरुजी होय जो. पिस्ता. ॥ ७ ॥ तत्त्वारथ श्वेताम्बर सम्मत सूत्र छ, दिगम्बर सम्मत ते सूत्र पवित्र जो; दीक्षाधारी मुनि गुरु त्यां भाखिया, जो जो तीर्थकर चोवीस चरित्र जो. पिस्ता. ॥ ८ ॥ त्रिज्ञानी तीर्थकर दीक्षा ले खरा, व्यवहारे मुनि गुरु मही जयकारजो; व्यवहारे वाविण तीर्थोच्छेद छे, धन्य धन्य मुनिवर गुरुनो अवतार जो. पिस्ता. ॥९॥ योगशास्त्रमा हेमचन्द्रजी भाखता, पञ्च महाव्रतपालक मुनि गुरु साचजो; हरिभद्रादिक मुनि गुरुने भाखता, मुनि गुरु विण बाकी जाणो काच जो. पिस्ता. ॥ १० ॥ भद्र बाहु नियुक्तिमां मुनिवर गुरु, आनन्दघननां वचन विचारो भव्य जो; नमिनाथना स्तवने पंचांगी खरी, मुनि गुरु मान्या साचं कर्तव्यजो. पिस्ता. ॥ ११ ॥ व्यवहार अने निश्चययी साधन साध्यता, श्रावक साधु इत्यादिक व्यवहार जो; नीतिनी आचरणा पण व्यवहारमा सर्वोत्तम साधन साचुं व्यवहारजो. पिस्ता. ॥ १२ ॥ जिन प्रतिमा वन्दन पण व्यवहार छे, वस्तु त्याग पण व्यवहारे निर्धारजो; भगवतीमाहि मुनिवर गुरु छे पञ्चधा, धन्य धन्य मुनिवर गुरुनो अवतारजो. पिस्ता ।। १३ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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