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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८९ वीरस्तवन. मान मायाना करनारारे-ए राग. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु वीर जिनेश्वर प्यारारे, मुज प्राणतणाछो आधारा; निर्धारा; सिद्ध सनातन निर्मलज्योति, शाश्वत सुख क्षायिकभावे गुणवर्या सहु, जिनवर जगजयकारारे. मभु. ॥१॥ सुखकर दुःखहर चरम जिनेश्वर, वसियाछो दिलमांहि म्हारा; बुद्धिसागर विभु वीरना नामथी, होवे सफल अवतारारे. For Private And Personal Use Only प्रभु. ॥२॥ अथ श्री सिद्धाचल दुहा रत्नत्रयी धारक प्रभु, ऋषभदेव अरिहंत; नमित सुरासुर इंदचंद, भव भंजन भगवंत. जयजय आदि जिणंद श्री, केवल कमलानाथ; सिद्धाचल गिरिमंडणो, सेवक करो सनाथ. पूर्व नवाणु वार ज्यां, आव्या ऋषभ जिणंद; ते सिद्धाचल बंदीए, कापे भवभयफेद. प्रायः ए गिरि शाश्वतो, महिमा अपरंपार; सम्यग् दृष्टि जीवने, निमित्त कारण धार. चार हत्यारा पातकी, ते पण ए गीरि जाय; भावे जिनवर भेटतां, मुक्तिवधुमुख पाय. भाव दुभेदथी, सेवो तिरथ एहः उपादान निमित्त योग, समर्याथी शिवगेह ॥६॥ कर्मरोग टाळवा, उत्तम छे आधार; १२. ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ || 3 || || 8 || ॥ ५ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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