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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८) किसी कारणसे त्वग्ररोग संयुक्त थी, इस वास्ते ही पतिने तिसको दुर्भगा जानके त्याग दीनीथी; सा अपाला अपने पिताके आश्रममें त्वग्रोगको दूर करने वास्ते चिरकालतक इंद्रको आश्रित्य होके तप करती हुई. सा कदाचित् इंद्रको सोमवल्ली प्रियकर है, इस वास्ते में सोमवल्लीको इन्द्रके ताई दूंगी, ऐसी बुद्धि करसे नदी काठे उपर जाती हुई. तहां स्नान करके, और रस्तेमें मिली सोमवल्लीको लेके, अपने घरको आती हुई. रस्तेमें ही तिस सोमको अपाला खाने लगी, तिसके भक्षणकालमें दांतोके घसनेसें शब्द उत्पन्न हुआ, तिस शब्दको पत्थरोंसें पीसते हुए सोमके समान ध्वनि जानकर तिस अवसरमें ही. इंद्र तहां आता हुआ, आयके, तिस अपालाको कहता हुआ कि, क्या इहां पत्थरोंसें सोमवल्ली पीसते हैं ? अपाला कहती है, अत्रिकी कन्या स्नानके वास्ते आकर सोमवल्लीको देखके तिसका भक्षण करती है, तिसके भक्षण करनेका ही यह ध्वनि है; नतु पत्थरोंसें पीसते सोमका. तैसें कहा हुवा इंद्र पीछे जाने लगा, जाते हुए इंद्रको अपाला कहती है, किस वास्ते तूं पीछे जाता हैं. ? तूंतो सोमके पीने वास्ते घरघरमें जाता है, तब तो तो इहां भी मेरी दाढी करके चावी हुई सोमवल्लीको तूं पी (पानकर ) और धानादिकको भक्षण कर. अपाला ऐसे इन्द्रको अनादर करती हुई फिर कहती है, इहां आए: तुझको मैं इंद्र नही जानती हुँ, तूं मेरे धरमें आके तो, मैं तेरा बहुमानः करूंगी. ऐसे इंद्रको कहके फिर अमाला विचार करती है कि इहां आया यह इंद्रही है, अन्य नही. ऐसा निश्चय करके अपने मुखमें डाले सोमको कहती है, हे सोम ! तूं आए हुए इंद्रके ताइ पहिले हलवेर, तद पीछे जल्दी २, सर्व ओरसे स्रवः तक. For Private And Personal Use Only
SR No.008534
Book TitleAtma Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages113
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Karma
File Size6 MB
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