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પ્રકાશક श्रीन सामान सभा
मान
ادامه لتسعدينية تعد من العقار محمد سعدالسعد
सम्यक्त्व : स्वरूप और कर्तव्य
मम्यक्त्व के दो भेद है-एक व्यवहार सम्यक्त्व, दसरा | निश्य सम्यक्त्व । जिनोक्त तचो में ज्ञानपूर्वक जो रुचि है, जिसको सम्यक्त्व कहते हैं। सो सम्यक्त्व जिन तत्रो में यथार्थ । रुचि उत्पन्न होने से होता है, सो तस्त्र तीन है । एक देवतन्त्र, दसरा गुरुतस्त्र, तीसरा धर्मतत्व । जो पुरुष इन के विषे श्रद्रानीति करे मो मम्यक्त्रवान होना है।
मम्यकत्वधारी जिनप्रतिमा का दशन करके पीछे भोजन । करे । जिनप्रतिमा के योग न मिले, तो पूर्वदिशा की तरफ मुख करके वर्तमान तीर्थंकरों का चैत्यवंदन करे । जिनमंदिर के बड़ी दम और चौरामी आशातना न करे ।
-आ. श्रीमद् विजयानंदसूरिजी महाराज !
जैन तत्थादर्श, भाग २
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શા, ગુલાબચંદ લલુભાઈ મહેદય પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ-ભાવનગર.
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