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श्रीबृहद् धारणायंत्र |
एक हस्ते प्रासादे कुर्यादधगुलावृद्धि
सुव्रतं सारदारुच पर्वभिर्विषः कार्यः
खंड पादोन मंगुलः र्यावद्पंचाशद्धस्तकं
ग्रंथि कोटर वर्जितं
समग्र धिः सुखावहः
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विषमाःथयो- कंकणानि प्रथमाद्वपदो (कोलाबा )परि अंत्यामर्कट्यश्नः
मटन विस्तृता ई
घंटोर्चे कलशस्तथा
दीर्घाष्ट्रांशेन विस्तरा
शिव्यतः कलशावधेः
ज्येष्ठात्पादोन कन्यशः
प्रमाणमामो ध्वजस्य चैदंड:
भवति तथा
दंड पडंबना अर्धचंद्राकृतिः पार्श्वे
ध्वजादंडप्रमाणेन-
शिखर युक्तेतु- दंड: कार्यस्तृतीयांशः मध्योऽष्टांशेन हीनोसौ
आचादिनकरे - विवयक शिखरः ( विनाकंठ ) - दंडस्तृतीयांशोनो
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• Intende
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भागे राखत्री
वेदिका भाराना भागे उंची करवी दृष्टिद्वार। ३. वारथीतीची वैरिका, उपरलघुबेठक, उपरमूर्ति, जिनदृष्टि बारना है। भागे
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पृथुः +
परिशिष्ट- ४, सुधारसवचनसंग्रहमांथी
भगवाननी बेठी अथवा उभी बन्ने प्रकारनी प्रतिमा यौवन अवस्थामांज होवी जोइए तेमां पहेली ( बैठी ) प्रतिमा पर्य कासन वाळी होवी जोइए ।
प्रथम जमणी जांघ अने जमणा साथळ उपर डाबो पम तथा डाबो हाथ स्थापन करवो पछी डाबी जांघ अने डाबा साथळ उधर जमणो पग अने जमणो हाथ मूकवो एने पंडित पुरुषों पर्य कासन माने छे ।
भगवान प्रतिमा उभी होयतो तेना बेभुज ढींचण सुधी लांबा जोइप बन्ने प्रतिमाभी श्री वत्स, उष्णीष, त्रण छत्र इत्यादि परिवार युक्त जोइए ।
नासिकाना अग्रभाग उपर त्रण उत्रना अग्रभागनी समरेषा आवे तो ते भ्रण छत्र सर्वोत्तम जाणवा तेमज नासिका अने कपाळ एना मध्य भागमां आही रेषाथी कपोळनो वेध थवो ओइए ।