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________________ बिषय श्लोक नख, केश, आभूषणके शस्त्र या वस्त्र खंडित हो तो यह मूर्ति देोषित नहि हे समुद्धार विवि करके पत्र પુર पूजन करना ७०–७४ स्थापित मूर्ति व्यङ्ग खंडित हो तो विसर्जन करके अन्य प्रतिमाका स्थापना करना ७२ धातु रत्नकी खंडित मूर्ति फीर संस्कार योग्य है मगर कष्ट पाषाणकी मूर्ति संस्कार योग्य नहि. विसर्जन करना ७५ लघुतम दोषवाली प्रतिमाका त्याग ७६ ३४ ३६ नहि करना खंडित दग्ध फटी हुई मूर्तिको मंत्र संस्कार न रहने से विसर्जन करना७९ मूर्तिका तरुण या बाल स्वरुप बनाना मगर वृद्ध रुप नहि वनोना ८ १ ३६ क्या सजोगो क्या स्थान पर असुरसे भ्रष्ट लिङ्गका फोर संस्कार करना ८२ भित संलग्न मूर्ति स्थापन करना अशुभ है, चित्रलेपकी मूर्ति भित्र संलग्न करना देवमूर्तिका आयुध कर्ण से उचा न करना ८३ ८४ ३७ ( जनमत ) प्रतिमा उत्थापन विधि से करना ८५-८७ ३८ अथ जिर्णोद्वार उपसे पुण्य बीप्रनुगृह के शिवालय ये निष्कारण ८८ तोडने से महादेोष जीर्ण व्यङ्ग वास्तु प्रासाद विधिसे तोडना ९०-९१ ર ३३ ३५ ૩૭ ३७ ८९ ३९ विषय जीर्णोद्धार में पूर्व मान रखना होन अधिक न करना और वास्तु द्रव्य-अधिक करना श्लोक पत्र ९२-९३ अन्य वास्तु मंदिरको द्रव्य दुसरेमें' लेना दोष हे , ४१ ९४ ४२ अथ गृहवेध - तन्दवेध तालवेध, द्रष्टेवेध, जावे स्त भवेध, ममवेव मार्गवेध, वृक्षवेत्र, छायावेध द्वाग्वैत्र, स्वग्वेध, कीलवेध, कोणवेध, भ्रमवेध, दीपालयवेध. कूपवेध, देवस्थानवेत्र ९५-९७ ४३-४८ प्रथम भूमिका आगेका भागमे स्वामीकी द्रष्टि पीळचा भाग पडे तो दोष है ९८ ४८ विश्वकर्मा प्रकाशोक्त गृहका अंतस्थित वेध १६ १ अंधक, २ रुधिर, कुब्ज, ४ कोण, ५ बधीर, ६ दिग्वक्र, ७ त्रिपिट ८ व्यङ्ग ९ मुग्ज, १० कूटिल, ११ कुट्टकं, १२ सुप्त, १३ शंखनाल, १४ विघट, १५ कंक और १६ कैर यह सोलोवेध १६ को लक्षण ९९ - १०४ ४९-५० विश्वकर्मोक्त गृहका बहिस्थित दशवेव १ कोण, २, ३ छिद्र, ४ छाया, ५ ऋजु, ६ वंश, ७ उक्ष, ८ उच्च, ९ संघात ओर १० द ंत 1 १०५-११८ ५२-५५
SR No.008436
Book TitleVedhvastu Prabhakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages194
LanguageGujarati, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Art
File Size5 MB
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