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________________ ( ८७ ) चारों दिशाओंके विभागमें पूर्वमे इंद्रके स्थानमे दक्षिणमे गृहक्षत स्थानमें और पश्चिममें पुष्पदंतके स्थान तथा उत्तरमे भल्लाट स्थानमें द्वार रखनेसे शोभा बढती है और उसे शुभफल दाता समझें । २०७-२०८ पूर्वतोऽभिमुखं वेश्म ध्वजे चाये तु शान्तिदम् । याम्यतोऽभिमुखं गेह सदा कल्याणकारकम् ॥ २०९ ॥ गृह च वारुणे शस्तं धनधान्यादिकं भवेत् । कौबेरी मुख च शान्ति पुष्टि सुखावहम् || २१० || अपराजित सूत्र પૂર્વ મુખનુ ઘર શાંતિ અને કીર્તિ દેનારૂ' જાણવું, દક્ષિણ મુખનું ઘર હંમેશાં કલ્યાણકારી જાણવુ, પશ્ચિમાભિમુખ ઘર ધન ધાન્યાદિ દેનારૂં જાણુવું અને ઉત્તર મુખનુ· ઘર શાંતિ, પુષ્ટિ અને સુખને દેનારૂં જાણુયુ.. ૨૦૯-૧૦ अपराजित सूत्र संतान अ० १०१ का १४-१५ श्लोकमें कहेते हैं कि शहरमें चारों ओरका भवन शुभ जानना. पूर्व मूखका गृह शान्ति और कीर्ति देता है. दक्षिणाभिमूख गृह हमेशा कल्याणदाता समजना. पश्चिमाभिमूखका गृह धनधान्य दाता है और उत्तराभिमूख गृह शान्ति पुष्टि और सुखको देता है एसे चारों दीशाका गृह उत्तम कहा है । कोइ दिशा निषिध नहीं कही । २०९ - २१० एक चण्ड्या रवे सप्त तिस्रीयाद्विनाथके | चतरत्रो विष्णु देवस्य शिवस्याद्ध प्रदक्षिणा ।। २११ ।। सूत्रसंतान દેવ પ્રદક્ષિણાના પ્રકાર એવા છે કે ચડીને એક, સૂર્યને સાત, વિનાયક-ગણપતિને ત્રણ, વિષ્ણુને ચાર, અને શિવજીને અરષી પ્રદક્ષિણા ફેરવી. ( કારણ કે શિવ પ્રનાલ ઓળંગાય નહિ. ) ૨૧૧ चंडीदेवी मंदिर में एक, सूर्यको सात, गणेशको तीन, विष्णुको चार और शिवमंदिरमें आधी प्रदक्षणा करनी । ( क्योकीं शिवनाल उल्लंघन नहीं होते ) २११
SR No.008436
Book TitleVedhvastu Prabhakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages194
LanguageGujarati, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Art
File Size5 MB
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