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________________ - पृष्ठं । पतिः मुद्रितपाठः . ग, पाठः घ. पाठः .. ! ....--... ------- वृत्त | कान्तो विम मूले यः प इष्टका(न्तः) तथै भक्ता | कलाश्रः बन्धः श्रीवत्स वृत्ति वियुक्ता दोर्धाम् कशे स्तम्भव्या तारं धृक्कर्णयोः | तत्पद्मासनतु कर्ण पञ्चभागं त्रि पद्मवत् चर उत्तमा (१)। विशालस्य स । पञ्चदण्डा त्रिपादात् कुर्याद वा ता कान्तोऽपि म मूलेऽयं प इष्टाकारस्तथै ग.वत् कलाश्रप बद्धः श्रीपट्ट गावत् विमुक्ता ग.वत् कण्ठोऽशे स्तम्भ व्या तारभृक्कण्ठयोः पद्मासनस्य तु ग.वत् तीव्राम् कण्ठांशे कण्ठ पञ्चभागत्रि पत्रवत् परमुसमां ॥ .ग.वत् विशालस्यास गुणदण्डा त्रिपादाद वा कुर्यात् बोधिकायां मध्यपढें पत्राच(म?)ल समाश्चान्यो(न्य) १४ चैक बोधिकारा माला चानानि (?) बोधिकायास्तु मध्यपट्टपत्राद्यल समाश्चान्योन्य चैते , बोधीतारा. मालास्थानानि ग.वत् मित्र गुणा तत्तार त्रिगुण तत्तार भुव भुज
SR No.008431
Book TitleShilparatna Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekumar K Sabhatsav Shastri
PublisherShreekumar K Sabhatsav Shastri
Publication Year1922
Total Pages324
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Culture
File Size5 MB
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