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________________ २९४ भूत-(धस्तनभूत) भणीअसी, ही, ही। भणिज्जसी, ही, हीअ । १ ने कालमा सह्यभेदसूचक 'ईअ' अने 'इज्ज' प्रत्यय धातुने नथी लागता ते काळमां तेनां सह्यभेदी रूपो कर्तरिरूपो जेवां समजवानां छे, जेमके( अद्यतन ) भूतकाळ-भण-भणीअ । भविष्यत्काळ-भण-मणिहिद, भणिहिए, इत्यादि । क्रियातिपत्ति-भण-भणेज्ज, ज्जा, भणंतो, भणमाणो, इत्यादि । प्रेरक- सह्यभेद १ धातुन प्रेरक सह्यभेदी रूप करवू होय त्यारे धातुने प्रेरणासूचक एक मात्र — आवि ' प्रत्यय लगाडी, ते तैयार थएल अंगने सह्यभेदसूचक 'ईअ' अने 'इज्ज' प्रत्यय पूर्वोक्त काळमां लगाडी प्रत्येक धातुनुं प्रेरक सह्यभेदी अंग बनाववानुं छे. २ प्रेरणासूचक कोइ पण प्रत्यय लगाड्या विना मात्र उपांत्य 'अ' नो दीर्घ करी अने सह्यभेदसूचक 'ई' अने 'इज्ज' प्रत्यय पूर्वोक्त काळमां लगाडीने पण प्रत्येक धातु- प्रेरक सह्यभेदी अंग तैयार थाय छे. (आ सिवाय बीजी रीते प्रेरक सह्यभेदी अंग बनी शकतुं नथी) ___ए रीते तैयार थएल प्रेरक सह्मभेदी अंगनां रूपाख्यानोनी प्रक्रिया कर्तरि रूपाख्यानोनी प्रक्रिया जेवी छे.
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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