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________________ २७४ होएस्सं होएस्सिमि होएस होएजिस्सं होएजिस्तिमि होएज्जिसडं होएजेस्सं . होएजेस्सिमि होएजेस होएजास्सं (जस्सं) होएज्जा (ज)सिमि होएज्जास होजिस्सं होजिस्सिमि होजिस होजेस्सं होजेस्सिमि होजेस होज्जास्सं (जस) होज्जा (ज) स्सिमि होजासउँ [प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची अने अपभ्रंशनो मात्र एक ज प्रत्यय लगाडीने नमूनारूपे 'हो' नां ए छए अंगनां रूपो उपर आपेलां छे, एज प्रकारे दरेक प्रत्यय लगाडीने 'हो' नां ( स्वरांत धातुनां ) बधां रूपो समजी लेवानां छे.] एज रीते हो नी पेठे पा, ला, दा, मिला, गिला अने वा वगेरे स्वरांत धातुओनां दरेकनां छ छ अंगो करी बधां रूपाख्यानो बनावी लेवानां छे. भविष्यकाळनां संस्कृत सिद्धरूपोने पण वर्णविकारना नियमो लगाडी प्राकृतभा वापरी शकाय छे. जेमके:सo- भोक्ष्यामः-भोक्वामो ( प्रा०) भविष्यति-भविस्सइ (,,) करिष्यति करिस्सइ (,) चरिष्यति चरिस्सइ (,) भविष्यामि भविस्सामि (,,) इत्यादि. आर्षग्रंथोमा केटलांक रूपो तो आ ज प्रकारनां वपराएलां छे.
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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