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________________ १७९ एकारांत अने 'ओकारांतनां प्राकृत रूपाख्यानो एकारांत अने ओकारांत नामोनां रूपाख्यानो प्राकृतमां उपलब्ध थतां नथी, तो पण ए शब्दोने छेडे ' अ ' ( स्वार्थिक-क) लगाडी तेनां रूपाख्यानो बनावाय के अने ते ते भाषा प्रमाणे ते बधां रूपाख्यानो पुंलिंगमां अकारांत ( • जिण') नी जेवां के, नपुंसकमां अकारांत ( ' कुल ' ) नी जेषां छे अने स्त्रीलिंगमां स्त्रीलिंगनी प्रक्रिया प्रमाणे बने छे. १ प्राकृतमा 'गो' शब्दना 'गोण' 'गाअ' 'गउ' एवां त्रण अंगो बने छ ( जूओ पृ. १२० पं० १ तथा पृ० ६१ ओ=अउ, आअ ) अने रूपाख्यानने प्रसंगे पण ए त्रण अंगो चपराय छे तेम पालिमां 'गो' शब्दनां 'गोण' (गोन) 'गु' अने 'गवय' एवां अंगो बने छ (जुओ पालिप्र० पृ० ९८ अं० ३२ अने तेनुं टिप्पण) अने रूपाख्यानने प्रसंगे वपराय छे. प्राकृतमा रूपाख्यानने प्रसंगे मूळ 'गो' अंग नथी वपरातुं. आर्षप्राकृतमां मूळ 'गो' अंग अने ते द्वारा थएलां रूपो पण (जूओ पृ० १३६ ' कम्म' नां आर्षरूपो माटेर्नु टिप्पण) मळी आवे छे तेम पालिमां ए मूळ 'गो' अंगनां पण रूपो-जे रूपो आर्षप्राकृतमां वपराएलां छे-छे अने ते आ प्रमाणे: गो २ गावं गावो, गवो. गावो, गवो. रावं गावेन गवेन गोहि, गोभि.
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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