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________________ त० च० छ० पं० स० सं० १५८ णा णो, + णो, + + * + + + अउ, अओ, णो, ० प्राकृत प्रत्ययोने लगता नियमो. १ ज्यां ज्यां • छे त्यां मूळ अंगने, अंते दीर्घ करीने वापरवानुं छे. २ ज्यां ज्यां + छे त्यां अकारांत नामने लागता 'प्रत्ययो पण समजवानां छे. मात्र पंचमीनो एक ' हि ' प्रत्यय लेवानो नथी. ३ ज्यां छे त्यां (संबोधनना एकवचनमां) मूळ अंगने अंते विकल्पे दीर्घ करवानो छे. ४ पंचमीना स्वरादि, सकारादि अने हकारादि प्रत्ययो पर रहेतां अंत्य 'इ' अने 'उ' नो दीर्घ थाय छे, ५ तृतीया, पंछी अने सप्तमीना बहुवचनना प्रत्ययो पर रहेता अंत्य 'इ' अने 'उ' नो दीर्घ थाय छे. ६ उकारांत नामोने प्रथमाना बहुवचनमां एक ' अवो ' प्रत्यय पण वधारे लागे छे: - भाणु + अवो भाणवो (सं० भानवः ) ( १ जूओ पृ० १२५. प्राकृत प्रत्ययोने लगता नियमो ' ना मथाळा नीचे ( पृ० १२६ मां ) जणावेलु कार्य अहिं-इकारांत अने उकारांतमां-थतुं नथी.
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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