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________________ १ २ ३ ४ - ६ १.३३ वीर (अपभ्रंशरूपो) एकव ० 'वीरु, वीरो, वीर, वीरा वीरु, वीर, वीरा, वीरेण, वीरेणं, वीरें. ७ ८ (सं०) वीरस्सु, बीरासु, वीरसु वीराहो, वीरहो. वीर, वीरा वीराहु, वीरहु, वीराहे, वीरहे वीर, वीरे बहुव० वीर, वीरा. वीर, वीरा. वीरेहिं, वीराहिं, वीरहिं. वीराहं, वीरहं, वीर, वीरा. वीराहु, वीरहुं. वीराहिं, वीरहिं. वीरु ! वीरो ! वीर ! वीरा ! वीराहो ! वीरहो ! वीर ! वीरा ! 'वीर' शब्दनां उपर जणावेलां बधी जातनां रूपो प्रमाणे प्रत्येक पुंलिंगी अकारांत शब्दनां शौरसेनी रूपों, मागधीरूपो, पैशाची रूपो अने अपभ्रंश रूपो समजी लेवानां छे. अकारांत शब्दनां प्राकृत रूपाख्यानो (नपुंसकलिंगनान्यतरजाति ) अकारांत नपुंसक नामोनां बधी जातनां रूपाख्यानो बनाववानी सघळी प्रक्रिया उपर प्रमाणे छे. जे कांइ खास भेद छे ते आ प्रमाणे छेः १ वीर + उ = वीर - जुओ स्वर - ६१० ९६.
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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