SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९९ आ उपरांत ते बीजां सर्वादिशब्दजन्य ( यदा कदा विगेरे ) अव्ययो छे, तेनो उल्लेख तद्धित प्रकरणमां आवनारो है, खरुं विचारिए तो ८८ ――― कड्डुं * कत्थई * कन्दुई * ककुथं करसी * खड्डुओ * खेडुं इयन्त इति संख्यान निपातानां न विद्यते निपात आगळ जणाच्या प्रमाणे देश्यप्राकृत ए, प्रस्तुत प्राकृतनुं एक अंग छे. तेमां जे जे शब्दोनो प्रयोग थएलो छे ते बधा शब्दो 'निपात' ने नामे ओळखाय छे. कारण के, ए शब्दोनी रचना, कोई जातनी व्युत्पत्ति के वर्णविकारनी अपेक्षा राखती नथी. किंतु ए, लौकिक संकेत अने उच्चारण उपर निर्भर छे. अहीं एवा-देश्यप्राकृतमा पराता केटलाक - निपातो आपीए छीए: अर्थ- अगया अत्य (च्छ) कं अलं *313 * आसीसा * उज्जलो अमुरा: अकाण्डम् आपः आशी: उज्ज्वल:-बली कुतूहलम् क्वचित् कन्दोत्थम् "" ककुदम् श्मशानम क्षुल्लकः वेलम् अकाले. दिन, पाणी. आशिष. बलवान्. कोड. उत्पल. घ. क्रीडा.
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy