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________________ कशी वीगत टीकाकारोए आपी नथी तेम अढार जातनी देशी भाषाने अर्धमागधी तरीके ओळखावी पण नथी. 'अट्ठारसदेसीभासाविसारए 'नो उल्लेख ज्ञातासूत्रमा अने औषपातिक सूत्रमा मळे छः "तते णं से भेहे कुमारे "त्यार पछी ते मेघ कुमार बावत्तरिकलापंडिए*अट्ठारसवि- बोतेर कळामां प्रवीण थयो अने हिप्पगारदेसीभासाविसारए" अढार प्रकारनी देशी भाषामा निपुण थयो” ज्ञातासूत्र पृ० ३८ [टीकाकारना मत प्रमाणे समिति ___'अढार जातनी भाषामां नहि पण ठीका पृ. ४२, अढार जातनी लिपिमा' प्रवीण थयो. आ अढार जातनी लिपिनो उल्लेख प्रज्ञापना सूत्रमा अने नंदी सूत्रमा मळे छे] “तए णं से दढपइण्णे “त्यार पछी ते दृढप्रतिज्ञ दारए बावत्तरिकलापंडिए* नामनो कुमार बोतेर · कळामां अट्ठारसदेसीभासाविसारए” प्रवीण थयो अने अढार प्रकारनी औपपातिक सूत्र पृ०९८ देशी भाषामां निपुण थयो " समिति सूचना ए उल्लेखो जोता अढार देशने लगती आपणी ए गुंच उकली शकती नथी पण एटलं कल्पी शकाय छे के, कदाच आ उल्लेखोने जोइने ज श्रीजिनदास महत्तरे पोतानी चूर्णिमा अढार जातनी देशी भाषाने 'अर्धमागधी' नुं नाम आप्यु होय. श्रीहरिभद्रना विद्याथी अने समसमयी तथा श्रीशीलांक अपर नाम तत्त्वादित्यना शिष्य श्रीदाक्षिण्यांचढ्नसूरिए बनावेली 'प्राकृत कुवलयमाला' ने जोतां अढार देशने लगती आपणी ए गुंच कदाच उकली शके,
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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