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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १३२] पंचास्तिकायसंग्रह [भगवानश्रीकुन्दकुन्द सकलपुद्गलविकल्पोपसंहारोऽयम्। इन्द्रियविषयाः स्पर्शरसगंधवर्णशब्दाश्च , द्रव्येन्द्रियाणि स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुः-श्रोत्राणि, कायाः औदारिकवैक्रियकाहारकतैजसकार्मणानि, द्रव्यमनः, द्रव्यकर्माणि, नोकर्माणि, विचित्रपर्यायोत्पत्तिहेतवोऽनंता अनंताणुवर्गणाः, अनंता असंख्येयाणुवर्गणाः, अनंता संख्येयाणुवर्गणाः व्य णुकस्कंधपर्यंताः, परमाणवश्च , यदन्यदपि मूर्तं तत्सर्वं पुद्गलविकल्पत्वेनोपसंहर्तव्य-मिति।।८२।। -इति पुद्गलद्रव्यास्तिकायव्याख्यानं समाप्तम्। टीकाः- यह, सर्व पुद्गलभेदोंका उपसंहार है। स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्दरूप [ पाँच ] इन्द्रियविषय, स्पर्शन, रसन, ध्राण, चक्षु और श्रोत्ररूप [ पाँच द्रव्येन्द्रियाँ, औदारिक, वैक्रियिक , आहारक, तैजस और कार्मणरूप [ पाँच] काया, द्रव्यमन, द्रव्यकर्म, नोकर्म, विचित्र पर्यायोंकी उत्पत्तिके हेतुभूत [अर्थात् अनेक प्रकारकी पर्यायें उत्पन्न होनेके कारणभूत ] *अनन्त अनन्ताणुक वर्गणाएँ, अनन्त असंख्याताणुक वर्गणाएँ और द्वि-अणुक स्कन्ध तककी अनन्त संख्याताणुक वर्गणाएँ तथा परमाणु, तथा अन्य भी जो कुछ मूर्त हो वह सब पुद्गलके भेद रूपसे समेटना। भावार्थ:- वीतराग अतीन्द्रिय सुखके स्वादसे रहित जीवोंको उपभोग्य पंचेन्द्रियविषय, अतीन्द्रिय आत्मस्वरूपसे विपरीत पाँच इन्द्रियाँ, अशरीर आत्मपदार्थसे प्रतिपक्षभूत पाँच शरीर, मनोगतविकल्पजालरहित शुद्धजीवास्तिकायसे विपरीत मन, कर्मरहित आत्मद्रव्यसे प्रतिकूल आठ कर्म और अमूर्त आत्मस्वभावसे प्रतिपक्षभूत अन्य भी जो कुछ मूर्त हो वह सब पुद्गल जानो।। ८२।। इस प्रकार पुद्गलद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान समाप्त हुआ। * लोकमें अनन्त परमाणुओंकी बनी हुई वर्गणाएँ अनन्त हैं, असंख्यात परमाणुओंकी बनी हुई वर्गणाएँ भी अनन्त हैं और [ द्वि-अणुक स्कन्ध, त्रि-अणुक स्कन्ध इत्यादि] संख्यात परमाणुओंकी बनी हुई वर्गणाएँ भी अनन्त हैं। [ अविभागी परमाणु भी अनन्त हैं।] Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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