SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहानजैनशास्त्रमाला] षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन | ११९ पुद्गलद्रव्यविकल्पादेशोऽयम्। पुद्गलद्रव्याणि हि कदाचित्स्कंधपर्यायेण, कदाचित्स्कंधदेशपर्यायेण , कदाचित्स्कंधप्रदेशपर्यायेण, कदाचित्परमाणुत्वेनात्र तिष्टन्ति। नान्या गतिरस्ति। इति तेषां चतुर्विकल्पत्वमिति।।७४।। खंधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणंति देसो त्ति। अद्धद्धं च पदेसो परमाणू चेव अविभागी।।७५।। स्कंधः सकलसमस्तस्तस्य त्वधु भणन्ति देश इति। अर्धार्ध च प्रदेश: परमाणुश्चैवाविभागी।।७५।। ............... गाथा ७४ अन्वयार्थ:- [ ते पुद्गलकायाः ] पुद्गलकायके [ चतुर्विकल्पाः ] चार भेद [ ज्ञातव्याः ] जानना [ स्कंधाः च] स्कंध, [ स्कंधदेशाः ] स्कंधदेश [ स्कंधप्रदेशाः] स्कंधप्रदेश [च] और [ परमाणवः भवन्ति इति] परमाणु। टीका:- यह, पुद्गलद्रव्यके भेदोंका कथन है। पुद्गलद्रव्य कदाचित् स्कंधपर्यायसे, कदाचित् स्कंधदेशरूप पर्यायसे, कदाचित् स्कंधप्रदेशरूप पर्यायसे और कदाचित् परमाणुरूपसे यहाँ [ लोकमें ] होते हैं; अन्य कोई गति नहीं है। इस प्रकार उनके चार भेद हैं।। ७४।। गाथा ७५ अन्वयार्थ:- [ सकलसमस्त: ] सकल-समस्त [ पुद्गलपिण्डात्मक सम्पूर्ण वस्तु] वह [ स्कंध: ] स्कंध है। [ तस्य अर्धं तु] उसके अर्धको [ देशः इति भणन्ति ] देश कहते हैं, [अर्धाधं च ] अर्धका अर्ध वह [प्रदेशः ] प्रदेश है [च ] और [ अविभागी] अविभागी वह [ परमाणुः एव] सचमुच परमाणु पूरण-सकळ ते स्कंध' छे ने अर्ध तेनं 'देश' छे. अर्धार्ध तेनुं प्रदेश' ने अविभाग ते ‘परमाणु' छ। ७५। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy