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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १००] पंचास्तिकायसंग्रह [भगवानश्रीकुन्दकुन्द कम्मेण विणा उदयं जीवस्स ण विज्जदे उवसमं वा। खइयं खओवसमियं तम्हा भावं तु कम्मकदं।। ५८।। कर्मणा विनोदयो जीवस्य न विद्यत उपशमो वा। क्षायिक: क्षायोपशमिकस्तस्माद्भावस्तु कर्मकृतः।। ५८।। द्रव्यकर्मणां निमित्तमात्रत्वेनौदयिकादिभावकर्तृत्वमत्रोक्तम्। न खलु कर्मणा विना जीवस्योदयोपशमौ क्षयक्षायोपशमावपि विद्येते; ततः क्षायिकक्षायोपशमिकश्चौदयिकौपशमिकश्च भावः कर्मकृतोऽनुमंतव्यः। पारिणामिकस्त्वनादिनिधनो - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - गाथा ५८ अन्वयार्थ:- [ कर्मणा विना] कर्म बिना [जीवस्य ] जीवको [ उदयः ] उदय, [ उपशमः ] उपशम, [क्षायिक: ] क्षायिक [ वा ] अथवा [क्षायोपशमिक: ] क्षायोपशमिक [ न विद्यते] नहीं होता, [ तस्मात् तु] इसलिये [ भावः ] भाव [-चतुर्विध जीवभाव ] [ कर्मकृतः ] कर्मकृत हैं। टीका:- यहाँ, [ औदयिकादि भावोंके ] निमित्तमात्र रूपसे द्रव्यकर्मोको औदयिकादि भावोंका कर्तापना कहा है। [एक प्रकारसे व्याख्या करने पर-] कर्मके बिना जीवको उदय-उपशम तथा क्षय-क्षयोपशम नहीं होते [अर्थात् द्रव्यकर्मके बिना जीवको औदयिकादि चार भाव नहीं होते]; इसलिये क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक या औपशमिक भाव कर्मकृत संमत करना। पारिणामिक भाव तो अनादिअनन्त *निरुपाधि स्वाभाविक ही हैं। [ औदयिक और क्षायोपशमिक भाव कर्मके बिना नहीं होते इसलिये कर्मकृत कहे जा सकते हैं- यह बात तो स्पष्ट समझमें आ सकती है; क्षायिक और औपशमिक भावोंके सम्बन्धमें निम्नोक्तानसार स्पष्टता की जाती है:] क्षायिक भाव. यद्यपि स्वभावकी व्यक्तिरूप [-प्रगटतारूप] होनेसे अनन्त [-अन्त रहित ] है तथापि, कर्मक्षय द्वारा उत्पन्न होनेके * निरुपाधि = उपाधि रहित; औपाधिक न हो ऐसा। [जीवका पारिणामिक भाव सर्व कर्मोपाधिसे निरपेक्ष होनेके कारण निरुपाधि है।] पुद्गलकरम विण जीवने उपशम, उदय, क्षायिक अने क्षायोपशमिक न होय, तेथी कर्मकृत ओ भाव छ। ५८। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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