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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षड्द्रव्य - पंचास्तिकायवर्णन कहानजैनशास्त्रमाला ] [cs नावबुध्यते तच्चक्षुर्दर्शनम्, यत्तदावरणक्षयोपशमाचक्षुर्वर्जितेतरचतुरिन्द्रियानिन्द्रियावलम्बाच्च मूर्ता - मूर्तद्रव्यं विकलं सामान्येनावबुध्यते तदचक्षुर्दर्शनम्, यत्तदावरणक्षयोपशमादेव मूर्तद्रव्यं विकलं सामान्येनावबुध्यते तदवधिदर्शनम्, यत्सकलावरणात्यंतक्षये केवल एव मूर्तामूर्तद्रव्यं सकलं सामान्येनावबुध्यते तत्स्वाभाविकं केवलदर्शनमिति स्वरूपाभिधानम् ।। ४२ ।। ण वियप्पदि णाणादो णाणी णाणाणि होंति गाणि । तम्हा दु विस्सरूवं भणियं दवियत्ति णाणीहिं ।। ४३ ।। न विकल्प्यते ज्ञानात् ज्ञानी ज्ञानानि भवंत्यनेकानि । तस्मात्तु विश्वरूपं भणितं द्रव्यमिति ज्ञानिभिः।। ४३ ।। एकस्यात्मनोऽनेकज्ञानात्मकत्वसमर्थनमेतत्। न तावज्ज्ञानी ज्ञानात्पृथग्भवति, द्वयोरप्येकास्तित्वनिर्वृत्तत्वेनैकद्रव्यत्वात्, वह चक्षुदर्शन है, [२] उस प्रकारके आवरणके क्षयोपशमसे तथा चक्षुके अतिरिक्त शेष चार इन्द्रयों और मनके अवलम्बनसे मूर्त-अमूर्त द्रव्यको विकरूपसे सामान्यतः अवबोधन करता है वह अचक्षुदर्शन है, [३] उस प्रकारके आवरणके क्षयोपशमसे ही मूर्त द्रव्यको विकरूपसे सामान्यतः अवबोधन करता है वह अवधिदर्शन है, [४] समस्त आवरणके अत्यन्त क्षयसे, केवल ही [ - आत्मा अकेला ही ], मूर्त-अमूर्त द्रव्यको सकलरूपसे सामान्यतः अवबोधन करता है वह स्वाभाविक केवलदर्शन है। - इस प्रकार [ दर्शनोपयोगके भेदोंके ] स्वरूपका कथन है ।। ४२ ।। गाथा ४३ अन्वयार्थः- [ ज्ञानात् ] ज्ञानसे [ ज्ञानी न विकल्प्यते ] ज्ञानीका [ - आत्माका ] भेद नहीं किया जाता; [ ज्ञानानि अनेकानि भवंति ] तथापि ज्ञान अनेक है । [ तस्मात् तु] इसलिये तो [ ज्ञानिभिः ] ज्ञानियोंने [ द्रव्यं ] द्रव्यको [ विश्वरूपम् इति भणितम् ] विश्वरूप [ – अनेकरूप ] कहा है। टीका:- एक आत्मा अनेक ज्ञानात्मक होनेका यह समर्थन है 1 प्रथम तो ज्ञानी [ – आत्मा ] ज्ञानसे पृथक् नहीं है; क्योंकि दोनों एक अस्तित्वसे रचित होनेसे छे ज्ञानथी नहि भिन्न ज्ञानी, ज्ञान तोय अनेक छे; ते कारणे तो विश्वरूप कह्युं दरवने ज्ञानीओ। ४३ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008395
Book TitlePunchaastikaai Sangrah
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages293
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size3 MB
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