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________________ નાટક સમયસારના પદ ४६७ | 6 સર્વ વિશુદ્ધિ દ્વાર છે (१०) प्रतिशत (als) इति श्री नाटक ग्रंथमैं, कहौ मोख अधिकार | अब बरनौं संछेपसौं, सर्व विसुद्धी द्वार ||१|| સર્વ ઉપાધિ રહિત શુદ્ધ આત્માનું સ્વરૂપ (સવૈયા એકત્રીસા) कर्मनिकौ करता है भोगनिको भोगता है, जाकी प्रभुतामैं ऐसौ कथन अहित है। जामैं एक इंद्री आदि पंचधा कथन नाहि, सदा निरदोष बंध मोखसौं रहित है।। ग्यानको समूह ग्यानगम्य है सुभाव जाकौ, लोक व्यापी लोकातीत लोकमैं महित है। सुद्ध बंस सुद्ध चेतनाकै रस अंस भरयौ, ऐसौ हंस परम पुनीतता सहित है।।२।। वणी (होड) जो निहचै निरमल सदा, आदि मध्य अरु अंत। सो चिद्रूप बनारसी, जगत मांहि जयवंत ।।३।। - नीत्वा सम्यक् प्रलयमखिलान् कर्तृभोक्त्रादिभावान् दूरीभूतः प्रतिपदमयं बन्धमोक्षप्रक्लृप्तेः । शुद्धः शुद्धः स्वरसविसरापूर्णपुण्याचलार्चि टंकोत्कीर्णप्रकटमहिमा स्फूर्जति ज्ञानपुंजः ।।१।।
SR No.008393
Book TitleKalashamrut 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages491
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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