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________________ ૪૬૪ उतरि मिलें दुहुकौ भ्रम भग्गै । तैसैं अभिमानी उन्नत लग, और जीवकौं लघुपद दग्गै । अभिमानीकौं कहैं तुच्छ सब, ग्यान जगै समता रस जग्गै । ।४४ અભિમાની જીવોની દશા (સવૈયા એકત્રીસા) करमके भारी समुझैं न गुनकौ मरम, परम अनीति अधरम रीति गहे हैं । हौंहि न नरम चित्त गरम धरमहूतें, चरमकी द्रिष्टिसौं भरम भूलि रहे हैं । । आसन न खोलें मुख वचन न बोलें, सिर नाये हू न डोलैं मानौं पाथरके चहे हैं । देखनके हाऊ भव पंथके बढ़ाऊ ऐसे, मायाके खटाऊ अभिमानी जीव कहे हैं ।। ४५ ।। જ્ઞાની જીવોની દશા (સવૈયા એકત્રીસા) धीरके धरैया भव नीरके तरैया भय, भीरके हरैया बर बीर ज्यौं उमहे हैं। मारके मरैया सुविचारके करैयासुख, કલશામૃત ભાગ-૬ ढारके ढरैया गुन लौसौं लह लहे हैं। रुपके रिझैया सब नैके समझैया सब, - हीके लघु भैया सबके कुबोल सहे हैं। बामके बमैया दुख दामके दमैया ऐसे, रामके रमैया नर ग्यानी जीव कहे हैं ।। ४६ ।। સમ્યકત્વી જીવોનો મહિમા (ચોપાઈ)
SR No.008393
Book TitleKalashamrut 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages491
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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