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________________ નાટક સમયસારના પદ तामैं पांच जड़ एक चेतन सुजान है। काहूकी अनंत सत्ता काहूसौं न मिलै कोइ, एक एक सत्तामें अनंत गुन गान है ।। एक एक सत्तामैं अनंत परजाइ फिरै, एकमैं अनेक इहि भांति परवान है। यहै स्यादवाद यहै संतनिकी मरजाद, यहै सुख पोख यह मोखकौ निदान है ।।२२।। साधी दधि मंथमैं अराधी रस पंथनिमैं, जहां जहां ग्रंथनिमैं सत्ताहीको सोर है । ग्यान भान सत्तामैं सुधा निधान सत्ताही मैं, सत्ताकी दुरनि सांझ सत्ता मुख भोर है ।। सत्ताकौ सरुप मोख सत्ता भूल यहै दोष, सत्ताके उलंघे धूम धाम चहूं वोर है। सत्तकी समाधिमैं विराजि रहै सोई साहू, सत्तातैं निकसि और गहै सोई चोर है ।। २३ ।। આત્મસત્તાનો અનુભવ નિર્વિકલ્પ છે. (સવૈયા એકત્રીસા) जामैं लोक वेद नांहि थापना उछेद नांहि, पाप पुन्न खेद नांहि क्रिया नांहि करनी । जामैं राग दोष नांहि जामैं बंध मोख नांहि, जामैं प्रभु दास न अकास नांहि धरनी । । जामैं कुल रीत नांहि जामैं हारि जीत नांहि, जामैं गुरु सीष नांहि वीष नांहि भरनी । आश्रम बरन नांहि काहूकी सरन नांहि, ऐसी सुद्ध सत्ताकी समाधिभूमि बरनी । । २४।। ૪૫૯
SR No.008393
Book TitleKalashamrut 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages491
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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