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________________ २८४ योगसार-प्राभृत प्रश्न :- आत्मा को छोड़कर अन्य वस्तु को जानते हुए भी क्या ध्यान हो सकता है - वीतरागभाव रह सकता है? उत्तर :- हाँ, आत्मवस्तु को छोड़कर अन्य द्रव्यों को वीतरागभाव से जानते रहने से कुछ बिगाड़ नहीं होता । इस विषय को अधिक स्पष्ट जानने के लिये मोक्षमार्गप्रकाशक शास्त्र के निश्चयाभासी प्रकरण में पृष्ठ २११ से २१३ जरूर देखें। मूढ़ जीवों की मान्यता - गन्धर्वनगराकारं विनश्वरमवास्तवम् । स्थावरं वास्तवं भोगंबुध्यन्ते मुग्धबुद्धयः ।।४७१॥ अन्वय :- मुग्धबुद्धयः गन्धर्वनगराकारं (इव) विनश्वरं (च) अवास्तवं भोगं स्थावरं वास्तवं (च) बुध्यन्ते। सरलार्थ :- मूढबुद्धि मनुष्य अर्थात् जिन्हें वस्तुस्वरूप का ठीक परिज्ञान नहीं है, वे गन्धर्वनगर के आकार के समान विनाशीक और अवास्तविक भोग समूह को स्थिर और वास्तविक समझते हैं। भावार्थ :- गंधर्वनगर शब्द का अर्थ - आकाश में बादलों से बना हुआ काल्पनिक सुंदर नगर । जिन पुण्योत्पन्न भोगों का ४६९वें श्लोक में उल्लेख है. वे आकाश में रंग-बिरंगे बादलों से स्वतः बने सुन्दर गन्धर्वनगर के समान विनश्वर और अवास्तविक हैं। उन्हें मूढ़बुद्धि स्थिर और वास्तविक समझते हैं, यह उनकी बड़ी भूल है। यहाँ प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाले बादलों के आकार की क्षणभंगुरता की ओर संकेत करके भोगों की अस्थिरता और निःसारता को उसके समकक्ष दर्शाया है। जो लोग भ्रमवश विषय भोगों को ऐसा नहीं समझते, उन्हें मोह से दूषितमति सूचित किया है। आत्मा का महान रोग चित्त-भ्रमकरस्तीव्रराग-द्वेषादि-वेदनः। संसारोऽयं महाव्याधि नाजन्मादिविक्रियः ।।४७२।। अनादिरात्मनोऽमुख्यो भूरिकर्मनिदानकः । यथानुभवसिद्धात्मा सर्वप्राणभृतामयम् ।।४७३।। अन्वय :- चित्तभ्रमकरः, तीव्रराग-द्वेषादि वेदनः, नाना-जन्मादि विक्रिय:अयं संसारः (आत्मनः) महाव्याधिः (अस्ति)। अयं (महाव्याधिः) आत्मनः अनादिः अमुख्यः, भूरिकर्मनिदानकः, सर्वप्राणभृतां (च) यथा-अनुभवसिद्धात्मा (अस्ति)। __ सरलार्थ :- यह संसार जो चित्त में भ्रम उत्पन्न करनेवाला, राग-द्वेषादि की वेदना को लिये हुए तथा जन्म-मरणादिकी विक्रिया से युक्त है, वह आत्मा का महान रोग है। [C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/284]
SR No.008391
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size920 KB
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