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________________ ये तो सोचा ही नहीं क्या चाहता है, वह कहना क्या चाहता है ? वैसे बातें तो साधारण-सी लगतीं हैं, पर ज्ञानेश जैसा व्यक्ति कह रहा है, जिसके सामने श्रोता बने बैठे बड़े-बड़े विद्वान् सिर हिलाते हैं, वाह-वाह करते हैं, गजब... गजब.... कहते हैं, गांठ का पैसा खर्च करके दूर-दूर से लोग उसे सुनने आते हैं। अतः उसकी बातों में वजन तो होना ही चाहिए। दूसरे दिन ही धनेश ने ज्ञानेश से कहा- “मित्र ! तुम तो जानते ही हो कि मैं कितना व्यस्त रहता हूँ। अनेक सामाजिक, धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा हूँ, थोड़ा-बहुत राजनीति में भी दखल रखना ही पड़ता है; क्योंकि मेरा धंधा भी कुछ ऐसा ही है - जिसमें राजनैतिक प्रभाव तो चाहिए ही, अन्यथा आये दिन कुछ न कुछ झंझट हुए बिना न रहे। आज इन्कम टैक्स वालों का छापा तो कल पुलिस वालों की तहकीकात । फिर भी मैंने तुम्हारी बात पर विचार करने की पूरी-पूरी कोशिश की। ५४ देखो भाई ! तुमने दो बातों पर विचार करने को कहा था। उनमें पहली जो चरित्र वाली बात है, वह तो साधु-संतों की बातें हैं । रही बात 'भावों' की, सो उसके तो हम कीड़े ही हैं। दिन-रात भावों में ही खेलते हैं। हमारा सारा व्यापार-धंधा 'भावों' पर ही आधारित है। बिस्तर छोड़ते ही सबसे पहले हमारे हाथों में शेयर के बाजार भावों का अखबारी पन्ना ही तो होता है। बाजार भावों का जैसा अध्ययन हमें है, वैसा शायद ही किसी को होगा। कोई माई का लाल इसमें हमें मात नहीं दे सकता। बाजार भाव दो तरह के होते हैं, एक....' " ज्ञानेश ने धनेश के द्वारा की गई भावों की विचित्र व्याख्या सुनकर पहले तो अपना माथा ठोक लिया। उसे विचार आया कि - "दिनरात शेयर के धंधे में मस्त व व्यस्त धनेश को शेयर के भाव नहीं दिखेंगे तो और क्या दिखेगा ? यह क्या पहचाने पुण्य-पाप के परिणामों को ? 29 खोटे भावों का क्या फल होगा? अपने में दिन-रात हो रहे शुभ-अशुभ भावों को ।” ज्ञानेश ने हँसकर कहा - " वाह ! धनेश भाई, वाह !! तुमसे यही अपेक्षा थी। जिसकी आँख पर जैसा हरा-पीला चश्मा चढ़ा होगा, उसे सब वस्तुएँ वैसी ही तो दृष्टिगत होंगी।" धनेश ने विनम्र होकर पूछा - "भाई ! इसमें मैंने गलत क्या कहा ?" ज्ञानेश ने कहा - "भाई! तुम्हारे शेयर के भावों से हमें क्या लेनादेना ? बाजार भाव कितने प्रकार के होते हैं - यह तो अर्थशास्त्र का विषय है। हमने तो तुमसे धर्मशास्त्र के संदर्भ में आत्मा के शुभ-अशुभ, पुण्य-पाप, राग-द्वेष रूप होनेवाले भावों के बारे में; आर्त- रौद्र रूप पाप भावों के बारे में विचार करने को कहा था और तुम समझे शेयर मार्केट के भाव । अस्तु!” धनेश उद्योगपति है। उसके कई कल-कारखाने हैं, यद्यपि उनसे उसे अच्छी आय है; परन्तु आये दिन मजदूरों की माँगों की समस्या, कच्चा माल मँगाने की चिन्ता, उधारी की वसूली और छोटी-मोटी अनेक समस्याओं से जूझने के कारण जीवन में सुख-शान्ति मिलना तो बहुत दूर, समय पर खाना और सोना भी हराम हो जाता। साथ ही वह स्वयं शेयर बाजार में बड़ा ब्रोकर भी है, आमदनी तो इसमें भी खूब है; पर मानसिक शान्ति इसमें भी बिल्कुल नहीं है, हो भी नहीं सकती; क्योंकि शेयर बाजार का स्वरूप ही कुछ ऐसा है कि जब भाव चढ़ते हैं तो अनायास ही आसमान छूने लगते हैं और जब उतरते हैं तो अनायास ही पाताल तक पहुँच जाते हैं। कब / क्या होगा, पहले से कुछ ठीक से अनुमान भी नहीं लगता। इस कारण लोगों के परिणामों में बहुत उथल-पुथल होती है, हर्ष-विषाद भी बहुत होता है। दोनों ही स्थितियों में नींद हराम हो जाती है। व्यक्ति सामान्य नहीं रह पाता। ऐसे लोगों को जब अधिक तनाव होता है तो उन्हें सामान्य होने के लिये नशीली वस्तुओं का सहारा लेना ही पड़ता है, जो न सामाजिक दृष्टि से ५५
SR No.008390
Book TitleYe to Socha hi Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size317 KB
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