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________________ जो जस करे सो तस फल चाखा 26 छह जो जस करे सो तस फल चाखा ज्ञानेश ने अपनी पत्नी सुनीता को दूसरों के कार्यों के करने की चिन्ता से मुक्त करने के लिए भारतीय धार्मिक मान्यताओं के आधार पर विश्व के कर्तृत्व की वास्तविकता से अवगत कराने के लिए कहा कि - "देखो सुनीता! यदि तुम्हें निम्नांकित तीन विश्व व्यवस्थाओं में से किसी एक को चुनने को कहा जाय तो तुम कौन-सी विश्वव्यवस्था को पसन्द करोगी? १. ईश्वरकृत, २. मानवकृत या ३. ऑटोमेटिक ?" सुनीता ने विनम्रता से उत्तर दिया - "मैं ही क्या ? कोई भी समझदार व्यक्ति ऑटोमेटिक व्यवस्था ही पसन्द करेगा; क्योंकि इस व्यवस्था में पराधीनता पक्षपात या अन्याय की गुञ्जाइश नहीं है। हम आज अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देख रहे हैं कि जब से कम्प्यूटर के द्वारा रेल्वे टिकटों के ऑटोमेटिक सिस्टम से रिजर्वेशन होने लगे, तब से आरक्षण टिकटों के वितरण में होनेवाला भयंकर भ्रष्टाचार समाप्त सा ही हो गया है। सभी यात्री निश्चिन्त हो गये हैं। टिकटों की प्रतीक्षा सूची का क्रमांक ऑटोमेटिकरूप से टिकटों की वापसी के आधार पर क्रमश: घटतेघटते स्वयं अपने क्रम में आता है, कोई बे-इन्साफी नहीं कर सकता। इसी बात को व्यक्तियों के बजन तोलने की ऑटोमेटिक मशीन के उदाहरण से भी समझ सकते हैं। सार्वजनिक स्थान पर लगी ऑटोमेटिक मशीन पर जितने व्यक्ति तुलेंगे, नियम से उतने सिक्के उसमें पड़े मिलेंगे और दूसरी ओर सादा काँटा भी वहाँ लगा हो, जिसपर तौलने की जिम्मेदारी एक ईमानदार व्यक्ति को सौंपी गई हो और आदेश दिया हो कि - वह पचास पैसे में प्रत्येक व्यक्ति को तौलकर उसका नाम रजिस्टर में दर्ज करे और शाम तक जितने व्यक्ति उस काँटे पर तुले हों, पचास पैसे के हिसाब से उतनी धनराशि कार्यालय में जमा कराये। सबसे पहले तो वह ईमानदार व्यक्ति उस काँटे पर स्वयं तुलेगा और रजिस्टर में अपना नाम नहीं लिखेगा। अपने बेटे-बेटी और मातापिता व पत्नी को तौलेगा और उनके नाम भी उसमें दर्ज नहीं करेगा। यदि दोस्त-मित्र आ गये तो उन्हें भी तौल देगा और उनसे भी पैसे नहीं लेगा। इसतरह जितने व्यक्ति तुलेंगे, गारन्टी से उनके हिसाब से उतने रुपये जमा नहीं होंगे। इसमें उसे बे-ईमानी-सी लगती ही नहीं है। वह तो मात्र उसे बे-ईमानी मानता है कि मैंने सौ व्यक्तियों से पैसे ले लिये हों और पचास के जमा कराऊँ, पचास के खा-पचा जाऊँ। जब मैंने उनसे पैसे लिये ही नहीं तो इसमें बे-ईमानी की बात ही क्या है ?" पर क्या उसका यह सोच सही है ? नहीं, कदापि नहीं। ऑटोमेटिक मशीन ऐसा नहीं करती, अत: ऑटोमेटिक व्यवस्था ही सही है। ___ मानवकृत व्यवस्था में और ऑटोमेटिक व्यवस्था में जो अन्तर है, वह तो उक्त दो उदाहरणों से स्पष्ट हो ही गया होगा। अत: मेरा तो दृढ़मत यही है कि इन दोनों में तो ऑटोमेटिक व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ है।" ज्ञानेश ने कहा - "सुनीता ! मानवीय और ऑटोमेटिक में तो ऑटोमेटिक सिस्टम ही ठीक है; क्योंकि उसमें बे-ईमानी की सम्भावना नहीं है। और मानवीय व्यवस्था में बे-ईमानी की सम्भावनाएँ प्रबल हैं; परन्तु ईश्वर तो सर्वशक्ति सम्पन्न और सर्वज्ञ होता है, उसके कर्तृत्व में तो ऐसी कोई कमी नहीं रहना चाहिए ?” सुनीता बोली - "हाँ, यही तो मैं भी सोच रही थी; आपने तो मानो मेरे मुँह की बात छीन ली; परन्तु मेरी समझ में यह नहीं आता कि
SR No.008390
Book TitleYe to Socha hi Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size317 KB
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