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________________ पाठ ८ अष्टाह्निका हिंसा को धर्म मानना और कहना तो छोड़ना ही चाहिए। शुभराग राग होने से हिंसा में आता है और उसे हम धर्म मानें, यह तो ठीक नहीं। राग-द्वेष-मोह भावों की उत्पत्ति होना हिंसा है और उन्हें धर्म मानना महाहिंसा है तथा रागादि भावों की उत्पत्ति नहीं होना ही परम अहिंसा है और रागादि भावों को धर्म नहीं मानना ही अहिंसा के संबंध में सच्ची समझ है। यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि तीव्र राग तो हिंसा है, पर मंद राग को हिंसा क्यों कहते हो ? पर बात यह है कि जब राग हिंसा है तो मंद राग अहिंसा कैसे हो जायेगा, वह भी तो राग की ही एक दशा है। यह बात अवश्य है कि मंद राग मंद हिंसा है और तीव्र राग तीव्र हिंसा है। अत: यदि हम हिंसा का पूर्ण त्याग नहीं कर सकते हैं तो उसे मंद तो करना ही चाहिए। राग जितना घटे उतना ही अच्छा है, पर उसके सद्भाव को धर्म नहीं कहा जा सकता है। धर्म तो राग-द्वेष-मोह का अभाव ही है और वही अहिंसा है, जिसे परम धर्म कहा जाता है। प्रश्न १. "अहिंसा' पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिये, जिसमें अहिंसा के संबंध में प्रचलित गलत धारणाओं का निराकरण करते हुए सम्यक् विवेचन कीजिए। २. आचार्य अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए ? ३. "रागादि भावों की उत्पत्ति ही हिंसा है और रागादि भावों की उत्पत्ति नहीं होना ही अहिंसा है।" उक्त विचार का तर्कसंगत विवेचन कीजिए। ४. मंद राग को अहिंसा कहने में क्या आपत्ति है ? स्पष्ट कीजिए? महापर्व दिनेश - आओ भाई जिनेश ! पान खाओगे? जिनेश - नहीं। दिनेश - क्यों? जिनेश - तुम्हें पता नहीं ! आज कार्तिक सुदी अष्टमी है न ! आज से अष्टाह्निका महापर्व आरम्भ हो गया है। दिनेश - तो क्या हुआ ? त्यौहार तो खाने-पीने के होते ही हैं। पर्व के दिनों में तो लोग बढ़िया खाते, बढ़िया पहिनते और मौज से रहते हैं। और तुम............? जिनेश - भाई ! यह खाने-पीने का पर्व नहीं है, यह तो धार्मिक पर्व है। इसमें तो लोग संयम से रहते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, तात्त्विक चर्चाएँ करते हैं। यह तो आत्मसाधना का पर्व है। धार्मिक पर्वो का प्रयोजन तो आत्मा में वीतरागभाव की वृद्धि करने का है। दिनेश - इस पर्व को अष्टाह्निका क्यों कहते हैं ? जिनेश - यह आठ दिन तक चलता है न । अष्ट=आठ, अह्नि=दिन । आठ दिन का उत्सव सो अष्टाह्निका पर्व। दिनेश - तो यह प्रतिवर्ष कार्तिक में आठ दिन का होता होगा ? | जिनेश - हाँ भाई ! कार्तिक में तो प्रतिवर्ष आता ही है। पर यह तो वर्ष में तीन बार आता है। अष्टाह्निका पूजन में कहा है नकार्तिक फागुन साढ़ के, अंत आठ दिन माँहि । नन्दीश्वर सुर जात हैं, हम पूजें इह ठाँहि ।। (३५) (३४)
SR No.008387
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size142 KB
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