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________________ (२२) छात्र- हम भी नहीं जा सकते क्या वहाँ ? अध्यापक नहीं भाई ! बताया था न कि रास्ते में बड़े-बड़े विशाल पर्वत हैं। उन पर्वतों पर प्रत्येक पर एक-एक विशाल सरोवर है। उनमें से १४ नदियाँ निकलती हैं और सातों क्षेत्रों में बहती हैं। उनके नाम हैं - गंगा-सिंधु, रोहित - रोहितास्या, हरित - हरिकान्ता सीता-सीतोदा, नारीनरकान्ता, सुवर्णकूला- रूप्यकूला और रक्ता रक्तोदा । ये नदियाँ क्रम से भरत से लेकर ऐरावत क्षेत्र में प्रत्येक में दो-दो बहती हैं, जिनमें पहली पूर्व समुद्र में और दूसरी पश्चिम समुद्र में गिरती है। इस मध्यलोक को तिर्यक् लोक भी कहते हैं, क्योंकि यह तिरछा बसा है न । छात्र- क्या मतलब, बस्तियाँ तो तिरछी ही होती हैं ? अध्यापक - मध्यलोक की बस्तियाँ तिरछी हैं, पर अधोलोक की नहीं। वे तो एक के नीचे एक हैं। छात्र हैं, क्या कहा ? अधोलोक ! अध्यापक - हाँ ! हाँ !! इसी पृथ्वी के नीचे सात नरक हैं, जिनके नाम हैं- रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुका-प्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा, महातम - प्रभा। वे क्रमशः एक के नीचे एक हैं। वे बस्तियाँ बहुत ही दुखद हैं। रहने का स्थान भी बिलों के सदृश है । वहाँ की जलवायु बहुत ही दूषित है। वहाँ के जीव बाह्य वातावरण की प्रतिकूलता से दुःखी तो हैं ही, पर उनके कषायों की तीव्रता भी है, अतः आपस में मारकाट किया करते हैं। नरक क्या? दुःख का घर ही है। जब जीव घोर पाप करता है तो वहाँ उत्पन्न होता है। जो जीव वहाँ उत्पन्न होते हैं, उन्हें नारकी कहते हैं। छात्र- पापी जीव तो नरक में जाते हैं और पुण्यात्मा ? अध्यापक - पुण्यात्मा स्वर्ग में जाते हैं। छात्र- ये स्वर्ग कहाँ है और कैसे हैं ? अध्यापक स्वर्ग ! स्वर्ग ऊर्ध्वलोक में हैं। ( २३ )
SR No.008387
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size142 KB
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