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________________ १३४ विदाई की बेला अभिमत १३५ • अन्य भाषाओं में भी अनूदित होना चाहिए सरल स्वभावी पण्डित श्री रतनचन्दजी भारिल्ल की कृति 'विदाई की बेला' ने धर्म को सीधे हमारे जीवन से जोड़ा है। प्राप्त विषम परिस्थितियों में सुखी होने के सरलतम उपाय के रूप में विदाई की बेला' मानों एक समीकरण सा बन गया है। ___ यह कृति मराठी और कन्नड़ भाषा के पाठकों को भी उनकी भाषा में अनूदित होकर उपलब्ध हो - ऐसी मेरी भावना है। आपकी सामान्य श्रावकाचार' और 'संस्कार' कृतियाँ भी अतिशय उपयोगी हैं, वे भी उपर्युक्त भाषाओं में अनूदित होनी चाहिए। मेरा मानना है कि - कठिन तत्त्वज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत करना ही विद्वताकी सही कसौटी है, जो इन कृतियों में देखने को मिलती - ब्र. यशपाल जैन एम.ए., कुम्भोज बाहुबली (महाराष्ट्र) • वीडीओ कैसिट बनना चाहिए ___ 'विदाई की बेला'और 'संस्कार' में लेखक ने गागर में सागर भर दिया है। यह प्रचार-प्रसार का युग है और आज टी.वी., वी.सी.आर. प्रचार के सशक्त माध्यम हैं। अतः इन पुस्तकों का संक्षिप्त रूपान्तरण होकर वी.डी.ओ. कैसिट बनना चाहिए। जिससे अधिकतम धर्मप्रभावना हो सके। लेखक की इस देन के लिए मैं आन्तरिक हृदय से उनका अभिवादन करता हूँ। - गम्भीरमल सोनी, फुलेरा • सभी मुमुक्षु इसे बारम्बार पढ़ें 'जन्म-मरण रूप संसार में भटकते हुए संसारी प्राणियों को जन्ममरण मिटाने का उपाय जानने के लिए एवं शान्ति सुख का लाभ प्राप्त कराने के लिए यह कृति अत्यन्त उपयुक्त है। सभी मुमुक्षु इसे बारम्बार पढ़ें व लाभ उठायें। - पण्डित नरेन्द्रकुमारजी भिषीकर न्यायतीर्थ, सोलापुर (महाराष्ट्र) • रोचक ज्ञानवर्द्धक कथानक आपने अन्तर के हिमालय प्रदेश में तथा चैतन्य के नन्दनवन में विहार करके एवं चेतन रत्नाकर में डुबकी लगाकर 'विदाई की बेला' के रूप में समाधि का वास्तविक स्वरूप लिखा है और कथानक के माध्यम से निज परमानन्द आत्मा की दो अवस्थाओं के रूप में कथानक के पात्र सदासुखी एवं विवेकी को प्रस्तुत किया है; जोकि अनादिकाल से अपने उपयोग लक्षण की विभावदशारूप होकर विवेकहीन थे, असमाधि से दुःखी थे, उन्हें ज्ञानगंगा में डुबकी लगवाकर रत्नधारण कराकर समाधिमरण की विचित्रता का अनुभव किया है। इस रोचक, ज्ञानवर्द्धक, कथानक से आत्मार्थियों को आशातीत लाभ होगा। इस कृति के लिए आपको जितना धन्यवाद दिया जाए कम है। - आतमागवेषी विद्वान सुजानमल मोदी, बड़ी सादड़ी (राज.) • अहिंसावाणी (मासिक) मार्च, जून, १९९२ प्रस्तुत कथाकृति को लघु उपन्यास कहें या बड़ी कहानी? वैसे कथावार्ता भी कहा जा सकता है। पूरी कृति का कथ्य उत्तम पुरुष में प्रस्तुत किया गया है। यों लेखक स्वयं ही उसमें एक चरित्र बन जाता है। एक पात्र के रूप में लेखक स्वयं प्रारम्भ से अन्त तक कथानक पर छाया रहता है। कथानक का पात्र विवेकी नायक के रूप में उभर कर हमारे सामने आता है। नायक विवेक होता है। उसके विवेकी होने की स्थिति बहुत ही क्षिप्र हुई है। उसकी गति कुछ धीमी और मनोवैज्ञानिक होनी अपेक्षित थी। विद्वान लेखक समाज के जाने-माने प्रवचनकार भी हैं, अतः इस कथानक में वे विवेकी के गुरु बन जाने के नाते संल्लेखना मरण के निर्यापकाचार्य के रूप में प्रस्तुत होते दिखाई देते हैं। कथानक में लेखक ने समाधिमरण/सल्लेखना मरण की सरल सुबोध व्याख्या की है और कथा नायक की मरणासन्न विषम अवस्था में उसकी स्थिति-प्रज्ञता तथा तटस्थ ज्ञाता-दृष्टा स्वरूप का अच्छा विश्लेषण एवं चित्रण किया है। यही इस कृति की खासी सफलता है। (72)
SR No.008385
Book TitleVidaai ki Bela
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size325 KB
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