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________________ विदाई की बेला/११ लोक में जिसतरह व्यक्ति जब पुराना वस्त्र त्यागकर नया वस्त्र धारण करता है तो प्रसन्न ही होता है, उसीतरह लोकोत्तरमार्ग में भी जब समाधिमरण के माध्यम से जीव वृद्ध व रोगी शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करता है तो उस समय उसे भी प्रसन्न ही होना चाहिए। देह में एकत्व-ममत्व रखने वाले मिथ्यादृष्टि-अज्ञानी जीवों के लिए मृत्यु दुःखद हो सकती है; क्योंकि वे पर्यायमूढ़ होने से मृत्यु को सर्वनाश का हेतु मानते हैं, पर उन भेदविज्ञानियों को तो मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए, जिन्होंने तत्त्वाभ्यास और वैराग्यजननी बारह भावनाओं के सतत चिन्तन-मनन से संसार, शरीर व भोगों की असारता, क्षणभंगुरता एवं आत्मा की अमरता का भलीभाँति अनुभव कर लिया है। जिनकी परिजन-पुरजनों के प्रति भी मोह-ममता नहीं रही है और देह के प्रति भी अपनत्व टूट चुका है, उन्हें तो मृत्यु के भय से भयभीत नहीं होना चाहिए।" मेरे इस समाधान से विवेकी ने भारी प्रसन्नता प्रगट की। वर्षाऋतु में आवागमन व यातायात की असुविधा के कारण प्रायः सभी जगह धंधा-व्यापार सहज ही कम हो जाता है। इन दिनों शादीविवाह आदि सामाजिक उत्सव भी नहीं होते, इस कारण लेन-देन एवं क्रय-विक्रय भी कम हो जाता है। कृषकों की फसलें भी खेतों में खड़ी होती हैं, इन सब कारणों से कृषक वर्ग, मजदूर वर्ग एवं व्यापारी वर्ग में इन दिनों धर्म कार्य करने की प्रवृत्ति विशेष देखी जाती हैं। सभी धर्मों के धार्मिक पर्व भी प्रायः इन्हीं दिनों अधिक मनाये जाते हैं। ___ चातुर्मास के कारण साधु-संतों को भी चार माह तक एक ही स्थान पर ठहरना पड़ता है। इस कारण भी इन दिनों धार्मिक वातावरण बनने का सहज योग बन जाता है। कारण कुछ भी सही, पर गृहस्थों को कुछ धर्म-कर्म करने का कभी न कभी सुअवसर तो मिल ही जाता है। इसे भी गृहस्थों का सद्भाग्य ही समझना चाहिए, अन्यथा व्यापारी तो इतना व्यस्त व्यक्ति होता है कि वह न कभी चैन से पेट भर भोजन कर सकता है और न कभी नींद भर सो सकता है। जब भी कोई उससे धर्म-कर्म, पठन-पाठन या मनन-चिन्तन करने की बात करे तो उसका एक ही उत्तर होता है - "अरे भाई, अभी तो हमें मरने की भी फुरसत नहीं है।" पर मेरी समझ में उनकी यह बात आज तक नहीं आई कि क्या मौत भी फुरसत वालों के पास ही आती है? काश! उनकी यह बात यथार्थ होती तो बहुत अच्छा होता । देश के काम भी अधिक से अधिक निपटते और कोई मरता भी नहीं; क्योंकि समाधि और सल्लेखना में अन्तर समाधि समता भाव से सुख-शान्ति पूर्वक जीवन जीने की कला है और सल्लेखना मृत्यु को महोत्सव बनाने का क्रान्तिकारी कदम है, मानव जीवन को सार्थक और सफल करने का एक अनोखा अभियान है। समाधि साधना और सिद्धि : ऐसे क्या पाप किए - पृष्ठ-१०५ (46)
SR No.008385
Book TitleVidaai ki Bela
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size325 KB
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