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________________ पाँच पाण्डव तत्वज्ञान पाठमाला, भाग-१ अध्यापक - बहुत अच्छा ! आज तुमने सच्चा और सार्थक पाठ पढ़ा। प्रतिज्ञा करो कि आज से काई कार्य शर्त लगाकर नहीं करेंगे। सुरेश और रमेश (एक साथ) हाँ गुरुदेव ! हम प्रतिज्ञा करते हैं कि आज से कोई भी कार्य शर्त लगाकर नहीं करेंगे और अपने साथियों को भी शर्त लगाकर काम नहीं करने की प्रेरणा देंगे। प्रश्न - १. पाण्डवों की कहानी लिखिये? इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है ? २. क्या द्रौपदी के पाँच पति थे? यदि नहीं, तो फिर ऐसा क्यों कहा जाता है? पाँच पाण्डव अपने किए का मजा चखाना चाहिये। यह सोचकर उस दुष्ट ने लोहे के गहने बनाकर उन्हें आग में तपाकर लालसुर्ख कर दिये और पाँचों पाण्डवों को ध्यानावस्था में पहिनाकर कहने लगा, दुष्टों ! अपने किए का मजा चखो। रमेश - हैं ! क्या कहा ! उस दुष्ट ने पाण्डवों को जला डाला ? अध्यापक - वह महामुनि पाण्डवों को क्या जलाता, वह स्वयं द्वेष की आग में जल रहा था। उसके द्वारा पहिनाए गरम लोहे के आभूषणों से पाण्डवों की काया अवश्य जल रही थी, किन्तु वे स्वयं तो ज्ञानानन्दस्वभावी आत्मा में लीन थे और आत्मलीनता की अपूर्व शीतलता में अनन्त शान्त थे तथा ध्यान की ज्वाला से शुभाशुभ भावों को भस्म कर रहे थे। सुरेश - फिर क्या हुआ? क्या वे जल गये? अध्यापक - हाँ, उनकी पार्थिव देह तो जल गई। साथ ही तीन पाण्डव - युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन ने तो क्षपक-श्रेणी का आरोहण कर अष्ट कर्मों को भी जला डाला और केवलज्ञान पाकर शत्रुजय गिरि से सिद्धपद प्राप्त किया तथा नकुल व सहदेव ने देवायु का बन्ध कर सर्वार्थसिद्धि प्राप्त की। वे भी वहाँ से आकर एक मनुष्य भव धारण करके मोक्ष प्राप्त करेंगे। रमेश - अच्छा तो ! शत्रुजय इसीलिए सिद्धक्षेत्र कहलाता है, क्योंकि वहाँ से तीन पाण्डव मोक्ष गये थे। वह शत्रुजय है कहाँ ? अध्यापक - हाँ भाई ! यह गुजरात प्रान्त के सौराष्ट्रवाले भाग में भावनगर के पास स्थित है। इसे पालीताना भी कहते हैं। सुरेश - सोनगढ़ के पास में। सोनगढ़ तो मैं गया था। भावनगर के पास ही तो सोनगढ़ है। अध्यापक - हाँ भाई ! सोनगढ़ से कुल १८ किलोमीटर है शत्रुजय गिरि । वहाँ की वन्दना हमें अवश्य करनी चाहिए तथा पाण्डवों के जीवन से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। सुरेश - हाँ ! अब मैं समझा कि आत्म-साधना के बिना लौकिक जीत-हार का कोई महत्त्व नहीं है। आत्मा की सच्ची जीत तो मोह-राग-द्वेष के जीतने में है। रमेश - और जुआँ के व्यसन में पड़कर महापराक्रमी पाण्डवों को भी अनेक विपत्तियों में पड़ना पड़ा, अत: हमें कोई भी काम शर्त लगाकर नहीं करना चाहिये। धृतराज राजा रुक्मण राजा अंबिका रानी अंबालिका रानी अंबा रानी गंगा रानी धृतराष्ट्र पाण्डु विदुर भीष्म पितामह गांधारी रानी कुन्ती रानी माद्री रानी १०० कौरव । । कर्ण युधिष्ठिर भीम (गांधर्व विवाह से) । नकुल । सहदेव अर्जुन (30) DShrutishs.6.naishnuiashvhaskathaskabinetvupamPatmalaPart-1
SR No.008382
Book TitleTattvagyan Pathmala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size166 KB
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