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________________ पाँच पाण्डव तत्त्वज्ञान पाठमाला, भाग-१ पाँच पाण्डव सुरेश - आज मैं तुझे नहीं छोडूंगा। जब तक पैसा नहीं देगा, तब तक नहीं छोडूंगा। रमेश - क्यों नहीं छोड़ेगा? सुरेश - जब पैसे नहीं थे तो शर्त क्यों लगाई ? रमेश - मैंने तो वैसे ही कह दिया था। सुरेश - मैं कुछ नहीं जानता, निकाल पैसे ? रमेश - पैसे हैं ही नहीं तो क्या निकालूँ? सुरेश - (कमीज पकड़कर) फिर शर्त क्यों लगाई ? अध्यापक - क्यों भई रमेश-सुरेश ! क्यों लड़ रहे हो ? अच्छे लड़के इसतरह नहीं लड़ते। हमें अपने सब कार्य शान्ति से निपटाने चाहिए, लड़झगड़कर नहीं। रमेश - देखिए मास्टर साहब! यह मझे व्यर्थ ही परेशान कर रहा है। सुरेश - मास्टर साहब ! यह मेरे पैसे क्यों नहीं देता? अध्यापक - क्यों रमेश ! तुम इसके पैसे क्यों नहीं देते ? अच्छे लड़के किसी से उधार लेकर उसे इसतरह परेशान नहीं करते। तुम्हें तो बिना मांगे उसके पैसे लौटाने चाहिए थे। यह मौका ही नहीं आना चाहिए था। रमेश - गुरुजी ! मैंने पैसे इससे लिए ही कब हैं? अध्यापक - लिए नहीं तो फिर यह मांगता क्यों है ? सुरेश - इसने पैसे नहीं लिये, पर शर्त तो लगाई थी और हार गया। अब पैसे क्यों नहीं देता? अध्यापक - हाँ ! तुम जुआँ खेलते हो ? अच्छे लड़के जुआँ कभी नहीं खेलते। सुरेश - नहीं साहब ! हमने तो शर्त लगाई थी। जुआँ कब खेला ? अध्यापक - हार-जीत पर दृष्टि रखते हुए रुपये-पैसे या किसी प्रकार के धन से खेल खेलना या शर्त लगाकर कोई काम करना या दाव लगाना ही तो जुआँ है। यह बहुत बुरा व्यसन है। इसके चक्कर में फंसे लोगों का आत्महित तो बहुत दूर, लौकिक जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। महाप्रतापी पाण्डवों को भी इसके सेवन से बहुत कठिनाईयाँ उठानी पड़ी थीं। अत: आज से प्रतिज्ञा करो कि अब कभी भी जुआँ नहीं खेलेंगे, शर्त लगाकार कोई कार्य नहीं करेंगे। सुरेश - ये पाण्डव कौन थे? अध्यापक - बहुत वर्षों पहिले इस भारतवर्ष में कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में कुरूवंशी राजा धृतराज राज्य करते थे। उनके तीन रानियाँ थीं - अंबिका, अंबालिका और अंबा। तीनों रानियों से क्रमशः धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर नामक तीन पुत्र हुए। राता धृतराज के भाई रुक्मण के पुत्र का नाम भीष्म था। धृतराष्ट्र के गान्धारी नामक रानी से दुर्योधन आदि सौ पुत्र उत्पन्न हए, जिन्हें कौरव नाम से जाना जाता है। पाण्डु के कुन्ती और माद्री नामक दो रानियाँ थीं। कुन्ती से कर्ण नामक पुत्र तो पाण्डु के गुप्त (गांधर्व) विवाह से हुआ, जिसे बदनामी के भय से अलग कर दिया गया था और वह अन्यत्र पलकर बड़ा हुआ तथा युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन तीन पुत्र बाद में हुए। माद्री से नकुल और सहदेव दो पुत्र हुए। पाण्डु के युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव - ये पाँच पुत्र ही पाँच पाण्डव नाम से जाने जाते हैं। सुरेश - हमने तो सुना है कि कौरव और पाण्डवों के बीच बहुत बड़ा युद्ध हुआ था। अध्यापक - कौरव और पाण्डवों में राज्य के लिए आपस में तनाव बढ़ गया था; पर भीष्म, विदुर और गुरु द्रोणाचार्य ने बीच में पड़कर समझौता करा दिया था। आधा राज्य कौरवों को और आधा राज्य पाण्डवों को दिला दिया, पर उनका मानसिक द्वन्द्व समाप्त नहीं हुआ। रमेश - गुरु द्रोणाचार्य कौन थे? अध्यापक - तुम गुरु द्रोणाचार्य के बारे में भी नहीं जानते हो ? ये भार्गववंशी, धनुर्विद्या में प्रवीण आचार्य थे। इन्होंने ही कौरव और पाण्डवों को धनुर्विद्या सिखाई थी। इनका पुत्र अश्वत्थामा था, जो इनके समान ही धनुर्विद्या में प्रवीण था। सुरेश - जब समझौता हो गया था तो फिर लड़ाई क्यों हुई? अध्यापक - तुमसे कहा था न कि उनका मन साफ नहीं हुआ था। एक बार जब पाण्डव अपने महल में सो रहे थे तो कौरवों ने उनके घर में आग लगवा दी। रमेश - आग लगवा दी? यह तो बहुत बुरा काम किया उन्होंने । तो क्या पाण्डव उसमें जल मरे ? DShrutishs.6.naishnuiashvhaskathaskabinetvupamPatmalaPart-1
SR No.008382
Book TitleTattvagyan Pathmala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size166 KB
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