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________________ FE FOR २. स्तवन - ऋषभ, अजित आदि चौबीस तीर्थंकरों में से किसी एक तीर्थंकर के अथवा सबके गुणों की स्तुति करना एवं मन-वचन-काय की विशुद्धिपूर्वक उनको नमस्कार करना स्तवन है। ३. वन्दना - अरहंत और सिद्धों के प्रतिबिम्बों के दर्शन-पूजन एवं श्रुतधर व तप में विशेष गुरुओं का मन-वचन व काय से स्तुतिपूर्वक नमस्कार करना वंदना है। ४. स्वाध्याय - वांचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेशरूप पाँच प्रकार से शास्त्रों का | अध्ययन व चिंतन स्वाध्याय है। ५. प्रतिक्रमण - द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव के आश्रय से अहिंसादि व्रतों में लगे हुए दोषों की निन्दा गर्दा द्वारा परित्याग (नाश) करना प्रतिक्रमण है। ६. कायोत्सर्ग - नित्य एवं नैमित्तिक क्रियाओं में जिनेन्द्रदेव के गुणों का स्मरण करते हुए जो शरीर के प्रति ममत्व का त्याग होता है, उसे कायोत्सर्ग कहते हैं। स्तवन व वन्दना में अन्तर - यहाँ स्तवन और वंदना के संबंध में ध्यान देने योग्य बात यह है कि स्तवन में तो ऋषभादि चौबीस तीर्थंकरों के व्यक्तिगत नामोल्लेखपूर्वक गुणों की स्तुति की जाती है तथा वंदना में अरहंत सिद्धों की प्रतिमा के माध्यम से एवं आचार्यादि के विशेष गुणों को स्मरण करते हुए नमस्कार किया जाता है। एक में व्यक्ति विशेष की मुख्यता है और दूसरे में किसी व्यक्ति विशेष की नहीं, बल्कि गुणों या पद-विशेष की मुख्यता से स्तुति की गई है। इनके अतिरिक्त मुनि के निम्नांकित सात मूलगुण और होते हैं - १. स्नान का त्याग, २. दंतमंजन का त्याग, ३. भूमि पर एक करवट से रात्रि के पिछले प्रहर में अल्प || निद्रा लेना, ४. वस्त्र का सर्वथा त्याग, ५. केशलुंचन करना, ६. तीन घड़ी सूर्योदय के बाद व तीन घड़ी दिन शेष रहने के पूर्व एक बार आहार लेना, ७. खड़े-खड़े पाणि को ही पात्र बनाकर अर्थात् हाथ की अंजुली में ही अल्प आहार लेना । इसप्रकार सर्वसाधुओं के ये २८ मूलगुण होते हैं। मुनिराज के द्वारा इनका सहज ही निरतिचार पालन होता है। TEN FRF
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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